Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 527
________________ २५१ २३६ ८७ क्र०सं० शब्दरूपाणि ४२३. व्यानशे ४२४. व्यानशाते ४२५. ध्यानशिरे ४२६. व्रतयति ४२७६ शकं वध्यात्म ४२८. शब्दायते ४२९. शय्यते भवता ४३०:: शश्वायते ४३१. शासति ४३२. शिश्येनायिषते ४३३. शिश्राय ४३६. शिक्षति .. ४३५. शीशांसते ४३६, शृणोति ४३७. शृण्वन् १६६ १९५ १६७ परिशिष्टम्-२ ४८१ पृ०सं० | क्र०सं० शब्दरूपाणि पृ०सं० ३७०४५१. सनोति ३७० | ४५२. समपादि ३५० | ४५३. समुद्रमपि शोषयाणि १७१ | ४५४. स स्वर्गलोकं याता ६४४५५. स स्वर्गलोकं याति १६७ | ४५६. स स्वर्गलोकं यास्यति २३९, २५८ | ४५७. स स्वर्गलोकमगमत् । १६७ | ४५८. सारसायते ३३१ | ४५९. सासद्यते २९० | ४६०. सीतां हारयति १७९ ३४२ ४६१. सीव्यति २४३ १.४१३ | ४६२. सुखायते १.३७ | ४६३. सुनोति . ५०, २४५, २८५ २४७ ४६४. सुनुते २४८ | ४६५. सुन्वन् ४६६. सूत्रयति १६६, २०१ (४६७. सूर्यमुद्गमयति १७९ | ४६८. सोसूच्यते १९४ | ४६९. स्त्रजयति ४७०. स्त्रुचयति १८६ ४७१. स्व: काम्यति १५० ४७२. स्वाञ्चकार | ४७३. हंसायते २७७ | ४७४. हलयति २८ | ४७५. हस्तयते | ४७६. हरयति १७१ | ४७७. क्षिप्रं कुरु कटं पुरा ३९३ | गच्छसि ग्राम P4 २७४ १७१ ४३८. शेते ४३९. श्येनायते १८६ २०४ ४४०. श्लक्ष्णयति ४४१. श्वेतयति ४४२. संचीवरयते ४४३. संभाण्डयते ४४४. संवर्मयति ४४५. संवस्त्रयति । ४४६. स: पचति ४४७. स: पचते ४४८. सत्रायते ४४९. सत्यापयति ४५ 'सनीस्रस्यते १७१ १७२ 59 :

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