Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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पृ०सं०
१८६
२६१
१६८
परिशिष्टम्-५
४९९ क्र०सं० विशिष्टशब्दाः पृ०सं० | क्र०सं० विशिष्टशब्दाः १५९. एषामेवाभिधानम्
| १८८. क्रियाफलम्
८, २७१ १६०. ओङ्कारं पृच्छामः १२५ /१८९. क्रियालक्षणम् १६१. ओड्कारः
| १९०. क्रियासमभिहार:
९७, ९९ १६२. कर्तृगामी
१०१, १८८ १६३. कर्तृत्वविवक्षा २६३, २७० १९१. क्रियासमुच्चय ९७, १०१ १६४. कर्तृपरामर्श:
२६४ | १९२. क्रियासामान्यवचनास्तु १६५. कर्तृवेदना १६२ कृभ्वस्तयः
२१४ १६६. कर्मशब्द: कारकवचनः २६४ | १९३. गणक:
१७४ १६७. काकाक्षिन्यायः
२६४ | १९४. गणकारवचनप्रमाणार्थम् २७८ १६८. कारिका
३४५ /१९५. गणवचनम् ३९६, ४१४ १६९. कारितम् ४६, १६७ | १९६. गणकारवचनम्
४१४ १७०. कार्यमन्वेष्टव्यम्
|१९७. गणकारवचनादप्यूह्यम् १७१. कार्यातिदेशः २५९, २६१, २६४ | १९८. गणकारवचनादेव
१८१ १७२. कार्या निमित्तं कार्यम् १२० | १९९. गणकृतमनित्यम् १७९ १७३. कार्षापणमनेकमाषसमुदायः ३०० | २००. गणकृतस्यानित्यत्वात् २९१, २९२ १७४. काल:
२२, ५१, ५२ | २०१. गणसूत्रम् . २६३ १७५. कालत्रितयाभिधानम् २१ | २०२. गणान्तरपठिता अपि धातव१७६. कालविशेष:
श्चुरादौ वेदितव्याः १७७ १७७. कालाधिकारः ५३, ५५ | २०३. गरीयसी १८, १९, २३, २४, ४० १७८. कुत्सनम्
१२८ | २०४. गरीयान् पक्ष: १७९. कुलचन्द्रप्रलापो हेय एव २९४ | २०५. गुण: १८०. कुव्याख्यानम् १४९ / २०६. गुणीभूतापि किया
१४१ १८१. को हि नाम लौकिकी
२०७. गोपनम्
१२८ विवक्षामतिवर्तते १३९ / २०८. गोमण्डलम्
१३४ १८२. किया ३८, १३८, १६७ | २०९. गौणत्वम्
३२ १८३. कियाकारकव्यवहतिः ३७ २१०. गौणमुख्यन्यायः १८४. कियाकाल:
| २११. गौणमुख्यव्यवहारः २९, ३२ १८५. कियागुणप्रकर्षवृत्तिः ३०४ | २१२. गौणमुख्यार्थाश्रयत्वात् ३१ १८६. किया द्विविधा ६६, १९०, २६९ | २१३. गौरवम् २३, १२४, १८४, २८८ १८७. कियातिपत्तिः १०, ६१, ६५, | २१४. गौरवोक्तिः
११८ ७२, ११३ | २१५. ग्रन्थगौरवभयात्
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