Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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४७६
कातन्त्रव्याकरणम् क्र०सं० शब्दरूपाणि पृ०सं० | क्र०सं० शब्दरूपाणि
पृ०सं० ११७. उन्मनायते १६७ /१४८. कर्हि भोक्ता
८६ ११८. उपमित्सते ४१३ |१४९. कलयति
१७१ ११९. उपवीणयति १७१, १८५, २०१ |१५०. कलहायते
१६७ १२०. उपश्लोकयति
|१५१. कष्टायते
१६७ १२१. उब्जाञ्चकार २०९ १५२. कक्षायते
१६७ १२२. उब्जिजिषति ३२१ । १५३. कामयते
२०२ १२३. ऊष्मायते
१६७ /१५४. कारयति १७८, २०१, २८५ १२४. ऋतीयते २०२ |१५५. कारयते
- २८५ १२५. एवं कुरु
| १५६. कारीषोऽध्यापयति
१७९ १२६. ऐयरुः
१५७. कासाञ्चके २०४, २१३ १२७. ओजायते
१६६ |१५८. कुटीयति प्रासादे १
१५३ १२८. ओदनं भोक्ता
६५ |१५९. कुरु दयाम् १२९. ओषाञ्चकार
|१६०. को भवतां पाटलिपुत्रमगच्छत् १३०. औन्दिदत्
|१६१. को भवतां पाटलिपुत्रमगमत् १३१. कटं करिष्यति
१६२. को भवतां भिक्षां ददाति ८७ १३२. कटं करोतु
१६३. को भवतां भिक्षां दाता १३३. कटं कुरु
८८ १६४. को भवतां भिक्षां दास्यति १३४. कटं कुर्यात् ९६ १६५. कृतयति
१७१ १३५. कटं चके देवदत्तः ६२ |१६६. कृशयति
१८८ १३६. कतमो भवतां भिक्षां ददाति ८७ १६७. कियते कटो देवदत्तेन २५१ १३७. कतमो भवतां भिक्षां दाता ८७ |१६८. कोणाति
५१, २५३ १३८. कतमो भवतां भिक्षां दास्यति ८७ १६९. गर्दभति
१६६ १३९. कतरो भवतां भिक्षां ददाति ८७ /१७०. गहनायते
१६७ १४०. कतरो भवतां भिक्षां दास्यति ८७ १७१. गालोडयति १४१. कथक: कंसं घातयति १७९ १७२. गोपायति . १९८, २०२ १४२. कथयति स्म जनः
१७३. गोपाया
१९८ १४३. कदा बुभुजे
|१७४. गोपायिता १४४. कदा भुक्तम्
८७ /१७५. ग्रामो गम्यते भवता २३९ १४५. कदा भुक्तवान् ८७ १७६. घटीयति
१४८ १४६. कदा भुङ्क्ते ८६ /१७७. चंचुरिता
३१९ १४७. कदा भोक्ष्यते ८६ /१७८. चंचूर्यते
३९९
६४ ।
१८५
१९८

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