Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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१९५
३३१
१४३,
९१
परिशिष्टम्-२
४७७ क्र०सं० शब्दरूपाणि पृ०सं० | क्र०सं० शब्दरूपाणि
पृ०सं० १७९. चकार ३५५ | २१०. जघास
३५५ १८०. चकासति ३३१ / २११. जजनानि
३३९ १८१. चकासाञ्चकार २०३, २१३ | २१२. जजन्यात्
३९ १८२. चकासामास २१७ | २१३. जञ्जप्यते
१९५ १८३. चकासाम्बभूव
२१७ / २१४. जञ्जभ्यते १८४. चकतुः
३६० | २१५. जक्षति १८५. चखान ३५१, ३५५ | २१६. जागराञ्चकार
२१० १८६. चङ्क्रम्यते
| २१७. जाग्रति
३३१ १८७. चञ्चूर्यते १९५ | २१८. जाज्वल्यते
१९४ १८८. चनीकस्यते
| २१९. जिजावयिषति
३८७ १८९. चनीस्कद्यते ३९३ | २२०. जिहीते
३७७ १९०. चस्कन्द ३४७ | २२१. जिह्नयाञ्चकार
२१२ १९१. चिकित्सत्यातुरं वैद्य: १३२ | २२२. जिह्नाय
२१२ १९२. चिकीर्षति
२२३. जीवतु भवान् १९३. चिकीर्षाञ्चकार
२०४ | २२४. जुगुप्सते
२०१ १९४. चिच्छेद ३५१ | २२५. जुगुप्सते भाम्
१३२ १९५. चिनोति
| २२६. जुघोष
३५२ १९६. चिन्तयति
| २२७. जुहवाञ्चकार
२१२ १९७. चिन्वन्
२४५ | २२८. जुहवानि १९८. चुलुम्पाञ्चकार २०४ | २२९. जुहाव
२१२ १९९. चुश्च्योत ३४६ | २३०. जुहूषति
३२९ २००. चेचीयते
३८९ | २३१. जुहोति ___५०, २९५, ३११, २०१. चोरयति ५१, १८१, २०२, २९६
३३८, ३५३ २०२. जंजपिता ३९७ / २३२. बुडुवे
३५६ २०३. जंजप्यते ३९७ | २३३. टिठकारयिषति
३५१ २०४. जंजभिता ३९७ | २३४. डुढौके
३५२, ३५९ २०५. जंजभ्यते
३९७ २३५. तनोति
५१, २५१ २०६. जगाम
३५५ | २३६. तस्थौ
३५१,३५८ २०७. जग्लौ
३४३ | २३७. तितिक्षते तपस्तापस: २०८. जघान ३५३ / २३८. तिष्ठेव
३४६ २०९. जघान कंसं किल वासुदेवः ६१ / २३९. तुदति
५०, २९६
२४५
३३८
१३२

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