Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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दूसरे उपदेश के अनुसार निर्देश प्रबाह्यमान उपदेशके अनुसार निर्देश प्रकृत में काल अल्पबहुत्वका निर्देश स्थानोंके अंख्यातवें भाग में यवमध्य होता है इसका निर्देश
मानाद्विगुणहानि आदि सम्बन्धी निर्देश
एक स्थितिविशेष समयप्रबद्ध शेष व भवबद्ध शेष सम्बन्धी विचार प्रकृत में यवमध्य सम्बन्धी विशेष सूचना
दूसरी भाष्यगाथा आघारसे ऊहापोह तीसरी भाष्यगाथा के आधारसे ऊहापोह चौथी भाष्यगाथा के आधारसे ऊहापोह अभव्यों के योग्य अन्य प्ररूपणाका निर्देश क्षपक या अक्षपकके विवक्षित कर्मोंके निर्लेपन कालको अपेक्षा अल्पबहुत्वका निर्देश एक समयके द्वारा निर्लेपित होनेवाले समय प्रबद्ध और भवबद्ध कम- अधिक कितने होते इसका निर्देश
इस विधि से यवमध्यका निर्देश
इस अपेक्षा अल्पबहुत्वका निर्देश
इस अपेक्षा गुणहानि विचार
( ३०
अल्पबहुत्व
वेदकालके प्रथम समय में ज्ञानावरणादि कर्मोकी
१९२
१९२
१९३
१९५
१९५
१९७
१९८
२००
२०४
२०५
२१०
२१८
२२४
२२४
२२४
२२६
२२६
अपेक्षा विचार करनेवाली नौवीं मूल गाथा २३१ वेदकालके प्रथम समय में सब कर्मोंके स्थितिकर्म
का विचार करनेवाली प्रथम भाष्यगाथा २३३ उसी समय सातावेदनीय आदिके स्थिति और अनुभागबन्धका निर्देश करनेवाली दूसरी
भाष्यगाथा
२३४
कृष्टिवेदक सम्बन्धी दो मूलगाथाओंको स्थगित करके सर्वप्रथम कृष्टिवेदककी परिभाषारूप अर्थकी प्ररूपणा करनेकी प्रतिज्ञा २३७ कृष्टिवेदक के प्रथम समयमें संज्वलन आदि किस कर्मका कितना स्थितिबन्ध और स्थिति सत्कर्म होता है इसका निर्देश २३८
कृष्टिवेदक के मोहनीयको अनुसमय अपवर्तना किस विधिसे होती है इसका निर्देश
२३९
आगे उसके क्रोध कृष्टिके बन्धोदय सम्बन्धी
अल्पबहुत्वप्ररूपणा
मान, माया और और लोभ संज्वलनकी अपेक्षा निर्देश
२४०
२४४
क्रोध के सिवाय अन्य १९ संग्रह कृष्टियों के सम्बन्धसे अपूर्व कृष्टियोंकी रचनाका निर्देश
इन अपूर्व कृष्टियोंकी रचना किस अवकाश में करता इसका निर्देश
कितने अन्तर के बाद अपूर्व कृष्टियोंकी करता है इसका निर्देश
२४५
२४८
रचना
२५०
२५२
बध्यमान प्रदेशपुंजकी निषेक प्ररूपणा संक्रम्यमाण प्रदेशपुंज से अपूर्व कृष्टियोंकी रचना
दो अन्तरालोंमें करता है इसका निर्देश इन्हीं के विषय में विशेष खुलासा उन कृष्टि अन्तरोंकी संख्याका निर्देश प्रथमादि समयों में कितनी कृष्टियाँ विनष्ट होती हैं इसका निर्देश
२५५
२५७
२६२
२६३
क्रोधका जघन्य स्थिति उदीरक कब होता है इसका निर्देश अनुभागeeकर्मकी अनुसमय अपवर्तना सम्बन्धी निर्देश
२६७ चार संज्वलनोंका स्थितिबन्ध और स्थिति सत्कर्म सम्बन्धी निर्देश
२६७
शेष कमौका स्थितिबन्ध और स्थिति सत्कर्मसम्बन्धी निर्देश
stant दूसरी संग्रहकृष्टिकी प्रथम स्थिति करनेका विधान
उस समय क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टि कितनी शेष रहती है इसका निर्देश
क्रोधकी दूसरी संग्रह कृष्टिके वेदककी विधिकी मीमांसा २७० उस समय क्रोध की दूसरी संग्रह कृष्टिके प्रदेशपुंजका संक्रम किसमें होता है इसका निर्देश २७२ क्रोधकी तीसरी संग्रह कृष्टिसे प्रदेशपुंज किसमें संक्रमित होता है इसका निर्देश मानकी प्रथम संग्रह कृष्टिसे प्रदेशपुंज किसमें संक्रमित होता है इसका निर्देश
२७२
२७३
२६६
२६८
२६९
२६९