Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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मायासे श्रेणि चढ़ने पर छह संग्रह कृष्टियाँ कालकी अपेक्षा छह भाष्यगाथाओं द्वारा होती हैं इसका निर्देश ५१ मीमांसाका निर्देश
७२ लोभसे श्रेणिसे चढ़नेपर तीन संग्रह कृष्टियाँ प्रकृतमें स्वस्थान और परस्थानकी अपेक्षा अल्पहोती है इसका निर्देश
५१
बहुत्वका निर्देश करनेवाली प्रयम भाष्यगाथा ७३ एक-एक संग्रह कृष्टिकी अनन्त अवयव कृष्टियों कौन संग्रह कृष्टि किससे प्रदेशपुजकी अपेक्षा के होनेका निर्देश
कितनी अधिक है इसका निर्देश करनेवाली कृष्टिकरणके कालमें अपकर्षण करण होने के
दूसरी भाष्यगाथा नियमकी सूचक भाष्यगाथा एतद्विषयक विशेष खुलासा
संग्रहकृष्टियोंमें प्रदेशपुज और अनुभागका उपशामक लोभ वेदकके द्वितीय त्रिभागमें कृष्टियों
तुलनात्मक विचार करनेवाली तीसरी भाष्यगाथा
८३ को करता हुआ अपकर्षक ही होता है इसका निर्देश
आदिवर्गणामें शुद्ध शेषका विचार करनेवाली
चौथी भाष्यगाथा परन्तु गिरनेवाला अपकर्षक और उत्तर्षक दोनों होता है इसका निर्देश
. इसी बातको परंपरोपनिधारूप श्रेणिकी अपेक्षा
स्पष्ट करनेका निर्देश कृष्टिके लक्षणकी प्रतिपादन करनेवाली तीसरी भाष्यगाथा द्वारा लक्षण का निर्देश
। पूर्वमें जो क्रोधकी अपेक्षा कथन किया है वही स्पर्धकके लक्षणका निर्देश
कथन शेष कषायोंकी अपेक्षा जाननेकी कृष्टिके लक्षणका निर्देश
सूचना करनेवाली पांचवीं भाष्यगाया ८८ कृष्टिगत अनुभागके अल्प बहत्वका निर्देश
मूलगाथाके 'अनुभागग्गेण' दूसरे पदके अनुसार कृष्टिके निरुक्त्यर्थका निर्देश
क्रोधादि सम्बन्धी द्वितीयादिके अनुभागसे दूसरी मूल गाथाकी सूचनाके साथ उसमें प्रति
प्रथमादि संग्रह कृष्टियोंका अनुभाग पादित अर्थका निर्देश
अनन्तगुणा होता है इसका प्रतिपादन इसमें आई हुई दो भाष्यगाथाओंकी सूचना
करनेवाली एक भाष्यगाथा ६३
मूल गाथाके तीसरे पदका 'च कालेण' के अनुसार मूल गाथाके पूर्वाधिमें निबद्ध प्रथम भाष्यगाया
कृष्टिवेदकके प्रथम समयमें मोहनीय कर्मके द्वारा कितनी स्थितियों और अनुभागोंमें
स्थितिसत्त्वका विचार करनेवाली विवक्षित सभी कृष्टियाँ होती है इसका
प्रथम भाष्यगाथा निर्देशपूर्वक खुलासा
क्षपक जिस कृष्टिको बेदता है उसका सान्तर वेद्यमान संग्रह कृष्टिकी कितनी कष्टियाँ उदय _ स्थिति में होती हैं इसका निर्देश
यवमध्य सहित दोनों स्थितियों में अवस्थानअवेद्यमानसंग्रहकृष्टिकी प्रत्येक कृष्टि किस स्थिति
को सूचक दूसरी भाष्यगाथा
९८ में रहती है और किसमें नहीं रहती इसका चूमिसूत्रोंमें इसी विषयको अल्पबहुत्व द्वारा निर्देश ६६ सूचित करनेका निर्देश
१०० अनभागको अपेक्षा प्रकृतमें विशेष विचार ६७ प्रकतमें सान्तर यवमध्य किस प्रकार घटित दूसरी भाष्यगाथा द्वारा वेद्यमान और भवेद्यमान
होता है इसका निर्देश संग्रहकृष्टि सम्बन्धी विशेष विचार ६८ प्रकृतमें शुद्ध शेष असंख्यातवें भागका निर्देश तीसरी मूलगाथा द्वारा प्रदेशपुंज आदिकी अपेक्षा करनेवाली तीसरी भाष्यगाथा
१०२ कृष्टियों के हीनाधिकपनेकी सूचनाका निर्देश ७० प्रथम स्थितिमें गुणश्रेणिका निर्देश करनेवाली प्रदेशपुंजकी अपेक्षा पाँच भाष्यगाथाओंद्वारा
चौथी भाष्यगाथा
१०४ भीमांसाका निर्देश
७१ प्रथमादि समयोंमें उदयमें प्रवेश करनेवाला द्रव्य अनुभागपंजको अपेक्षा एक भाष्यगाथाद्वारा असंख्यात गुणित श्रेणीरूप होता है इसका मीमांसाका निर्देश
निर्देश करनेवाली पांचवीं भाष्यगाथा
नायगाथा
८९
७२