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__ मेरी यह दृढ़ धारणा है कि कर्म-सिद्धान्त का यह विवेचन केवल सैद्धान्तिक पक्ष की प्रस्तुति नहीं है इसमें जीवन का सम्पूर्ण विज्ञान है। जीवन का विकास, विस्तार एवं परिवर्तन की समस्त संभावनाएँ कर्मवाद में छिपी हैं और यह उन संभावनाओं का द्वार उद्घाटित करता है। जीवन में जो सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव, यश-अपमान, वेदना और विषाद, हर्ष और आनन्द की प्राप्ति होती है उन सबकी सहेतुक व्याख्या कर्मवाद करता है। उदाहरण के रूप में किसी व्यक्ति का दिन सुख व शान्ति से बीतता है परन्तु रात में वेचैनी होती है, किसी को एक प्रकार की जलवायु में दमा, श्वास आदि की बीमारी हो जाती है दूसरे प्रकार की जलवायु में वह स्वस्थ रहता है। स्थान, समय, क्षेत्र, भाव, अवस्था, सहायक आदि कारणों में परिवर्तन या बदलाव आने से सुख-दुःख की स्थितियों में बदलाव आता है। मान-सम्मान में अन्तर आ जाता है। आयु-परिवर्तन के कारण अनेक प्रकार की स्थितियाँ बदलती हैं। इन सबके पीछे कर्म-सिद्धान्त का कार्य-कारण हेतु है।
प्रज्ञापनासूत्र में आचार्य ने बताया है कर्मविपाक के विभिन्न कारण हैं, जैसेगतिं पप्प, ठितिं पप्प, भवं पप्प, पोग्गलं पप्प-गति, स्थिति, भव, पुद्गल परिणाम। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि कारणों से कर्मविपाक की स्थितियों में परिवर्तन आता है। जैसे दिन में नींद कम आती है रात को नींद अधिक। कर्मशास्त्रीय दृष्टि से इसका कारण है दर्शनावरणीय कर्म का उदय। रात के समय दर्शनावरण का उदय प्रवल होता है। सामान्यतः युवा अवस्था में मोहनीय का तथा बुढ़ापे में असातावेदनीय का उदय अधिक होता है। इस प्रकार एक-एक घटना की गहराई में जाने से यह समझ में आता है कि इस स्थिति के पीछे किसी अन्य का हाथ नहीं, किन्तु हमारा अपना कृत कर्म है। कृत कर्म का विपाक-नियम समझने पर मानसिक असमाधि दूर होती है, धर्म-साधना अच्छी प्रकार होती है। दुःख में भी मुख, गेग में भी शान्ति और प्रसन्नता का अनुभव किया जा सकता है। इस कारण कर्म-सिद्धान्त केवल दार्शनिक गुत्थी या खाली मस्तिष्क का व्यायाम नहीं है, किन्तु यह जीवन व जगत् के परिवर्तनों के नियम को, सुख-दुःख के हेतु को समझने का विज्ञान है
और मेरा तो यह भी विश्वास है कि कर्म-विज्ञान का सूक्ष्म अध्येता, कर्मों की विभिन्न प्रकृतियों पर चिन्तन-मनन करने वाला अपने भावी जीवन व जन्म-जन्मान्तरों की स्थिति का भी पूर्वाभास, पूर्वानुमान कर सकता है। इसलिए अध्यात्म के विषय में, आत्मा के विपय में रुचि रखने वाले पाठक को कर्म-विज्ञान का परिशीलन, स्वाध्याय और चिन्तन बहुत ही उपयोगी व लाभप्रद सिद्ध होगा। __कर्म-विज्ञान के कुछ भागों में जहाँ कर्माम्रव के कारण और उसकी बंध स्थिति आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन हुआ है, वहाँ मानवे भाग में कर्म से मुक्त होने की
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