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ज्यों था त्यों ठहराया
तो जिनके घर में ठहरा था, जो उस मंदिर को बनवा रहे थे, मैंने उनसे पूछा कि यह बड़े मजे की बात है! इस मंदिर की दीवालें मुसलमान उठा रहे हैं। और इस मंदिर की मूर्ति भी मुसलमान गढ़ रहे हैं! और इस मंदिर की सीढ़ियां भी मुसलमान खड़ी करेंगे। और यह मंदिर हिंदुओं का होगा? और इसी को एक दिन मुसलमान जलाएंगे। मैंने उनसे पूछा कि यह मंदिर हिंदुओं का कैसे हो जाएगा। दीवालें मुसलमान उठा रहे हैं। कितने ही मंदिर हैं भारत में, जो मसजिद बना दिए गए हैं, क्योंकि मुसलमानों के जमाने में, जब उनका राज्य था, उन्होंने हर किसी मंदिर को मसजिद बना दिया। देर क्या लगती थी! थोड़े से फर्क करने हैं, और मंदिर मसजिद हो गई! और फिर अगर हिंदुओं का राज्य लौट आया किसी क्षेत्र में--उन्होंने मसजिद को फिर मंदिर बना लिया! मंदिर और मसजिद में कुछ फर्क नहीं है। नासमझों को होगा फर्क। समझदारों को कोई फर्क नहीं है। मुझे तुम मसजिद में बिठा दो, क्या फर्क पड़ेगा! इसी मौज और इसी मस्ती में बैलूंगा। तुम मुझे मंदिर में बिठा दो, कोई फर्क न पड़ेगा। इसलिए तो गीता पर बोलूं, कि कुरान पर, कोई भेद नहीं पड़ता। मुझे तो जो बोलना है, वही बोलना है। मुझे तो जो कहना है, वही कहना है। मुझे तो गीत गाना है--वही गाना है। तुम साज मेरे हाथ में कोई भी थमा दो, गीत मैं वही गाऊंगा, राग मैं वही गाऊंगा। तुम बांसुरी पकड़ा दो--तो; और तुम सितार दे दो--तो, बोलूं--तो वही बोलूंगा। चुप रहूं--तो उसके लिए ही चुप रहूंगा। मेरे मौन में भी वही होगा; मेरी मुखरता में भी वही होगा। धार्मिक व्यक्ति न हिंदू होता, न मुसलमान होता, न ईसाई होता, न सिक्ख होता। सिर्फ धार्मिक होता है। मेरा प्रयास--भगीरथ प्रयास--यही है कि किसी तरह धर्मों से मुक्ति हो जाए तुम्हारी और धार्मिकता तुम्हारे जीवन में खिल जाए। मत पूछो मुझसे--इश्के बुतां करूं, कि मैं यादे खुदा करूं? जिस भांति तुम धार्मिक हो सको। तुम अलग-अलग लोग हैं, अलग-अलग उनकी रुचियां हैं। अब मीरा को तुम जबर्दस्ती महावीर बनाना चाहो, तो गलती हो जाएगी। मीरा बेचारी मीरा भी न हो पाएगी--महावीर तो हो ही नहीं सकती। तुम महावीर को मीरा बनाना चाहो, तो गड़बड़ हो जाएगी। फिर वे महावीर भी न हो पाएंगे; और मीरा हो नहीं सकते। यह यूं पागलपन है, जैसे कोई बेला को जुही बनाए; जुही को चंपा बनाए। चंपा को गुलाब होने के पाठ बढ़ाए। सारी बगिया पागल हो जाए! यह सारे आदमी का बगीचा पागलों से भर गया है। यहां पागल ही पागल हैं। यहां कोई होश की बात ही जैसे नहीं कर रहा है। मैं न किसी को मुसलमान बनाना चाहता--न किसी को हिंदू। हां, इतना मैं जरूर कहना चाहता हूं: जो तुम्हें रुचे। कुरान की अपनी मौज है, अपनी मस्ती है। अगर भा जाए किसी के दिल को, तो बस, ठीक। तो कुरान की नाव बना लेना। और किसी को गीता भा जाए, तो क्या अड़चन! गीता की नाव बना लेना।
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