Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 13
________________ ज्यों था त्यों ठहराया ज्यूं था त्यूं ठहराया! ऐसी साक्षी की अवस्था में तुम पुनः स्वभाव में थिर हो जाते हो। बुद्ध इसको कहते हैं--तथाता। बुद्ध का एक नाम है तथागत। जो ऐसा ठहर गया, जो तथाता में आ गया--वह तथागत। जो स्वभाव में आ गया, जो स्वरूप में डूब गया, उसने फिर सागर पा लिया। फिर मछली नहीं तड़पती। फिर मस्ती है। फिर उत्सव है। फिर जीवन एक समारोह है। फिर आनंद ही आनंद की वर्षा है। फिर अमृत के मेघ गरजते हैं। ज्यूं मुख एक देखि दुई दर्पन, गहला तेता गाया। जन रज्जब ऐसी बिधि जानें, ज्यूं था त्यूं ठहराया।। इसलिए मैं कहता हूं, इस छोटे से सूत्र में सब आ गया। कुछ शेष नहीं रह जाता। इस एक बात को तुम पूरी कर लो, तो तुम्हारे जीवन में धर्म का अवतरण हुआ; तुम्हारी ज्योति जली--ज्योति जो जन्मों से बुझी पड़ी है। तुम्हारे भीतर फिर जीवन का प्रवाह बहा; प्रवाह, जो कितने जन्मों से अवरुद्ध है। कठौती की गंगा हो गए हो तुम! इस सूत्र को पूरा करते ही फिर गंगोत्री। फिर वही पावन गंगा। फिर तुम जहां से बहोगे, वहां तीर्थ बनेंगे। तुम जहां उठोगे-बैठोगे, वहां तीर्थ बनेंगे। तुम जहां उठोगे-बैठोगे वहां काबा और काशी! दूसरा प्रश्न: भगवान, इश्के बुतां करूं कि मैं यादे खुदा करूं इस छोटी-सी उम्र में, मैं क्या-कया खुदा करूं अब्दुल करीम! इश्के बुतां करूं कि मैं यादे खुदा करूं! तुमने दो कर लिए! वही बात कर ली--ज्यूं मुख एक देखि दुई दर्पन। इश्के बुतां और यादे खुदा क्या दो बातें हैं? वह जो मंदिर में मूर्ति है और मसजिद में जो शून्य है, वह एक के ही दो दर्पण हैं। मंदिर एक दर्पण है; मसजिद एक दर्पण है। सत्य तो एक है। किसी ने उसे निर्गुण की तरह देखा; किसी ने उसे सगुण की तरह देखा। सब गुण भी उसके हैं। और जिसके सब गुण हैं, वह निर्गुण होगा ही। इसलाम उसे निर्गुण की तरह पूजा है। दूसरे मजहब, दूसरे धर्म उसे सगुण की तरह पूजे हैं। मगर सब गुण उसके हैं। यह जो अभिव्यक्त जगत दिखाई पड़ रहा है। ये जो रंग इंद्रधनुष के--सब रंग उसके। ये सुबहें उसकी, ये सांझें उसकी, ये चांदत्तारे उसके। ये अलग-अलग रूपों में बैठे हुए लोग उसके। स्त्री में स्त्री है, पुरुष में पुरुष है। वृक्षों में वृक्ष। पत्थरों में पत्थर। हम दो में तोड़ लेते हैं, बस दुविधा में पड़ जाते हैं। फिर सवालों पर सवाल हैं। फिर सवालों का कोई अंत नहीं। Page 13 of 255 http://www.oshoworld.com

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