Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 12
________________ ज्यों था त्यों ठहराया तुम्हारे भीतर भी ऐसी कील है। कबीर ने कहा कि मैं यह देखता था कि कोई इस सूत्र को पूरा कर सकता है या नहीं । कमाल, मैं खुश हूँ! उसी दिन कबीर ने कमाल को यह बात कही थी कि बूढा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल! लोग समझते हैं, यह कमाल की निंदा की नहीं यह कमाल की प्रशंसा में कहा। कबीर ने कहा, मैं तो कबीर ही रहा। कम से कम मैंने कुछ तो पैदा किया; एक बेटा पैदा किया, एक बेटी पैदा की। कबीर का बेटा था कमाल, और बेटी थी कमाली कबीर ने नाम भी उनको कमाल, कमाली इसीलिए दिया था, कि कबीर ने साक्षी भाव में ही उनको जन्म दिया था इसलिए कमाल -- था। यही तो कमाल है कि संन्यासी रहता संसार में है, और संसार उसे छुए न। कबीर पत्नी के साथ रहे; बाजार में रहे। जुलाहे थे, कपड़ा बुनते रहे, बेचते रहे। और आखिर में यह भी कह सके...। हिम्मत के आदमी थे, गजब के आदमी थे! यह भी कह सके परमात्मा को कि ज्यों की त्यों रख दीन्हीं चदरिया- यह ले अपनी चादर सम्हाल। यह ज्यों की त्यों रख दे रहा हूं। जैसी तूने दी थी, वैसी ही रख दे रहा हूं। दाग भी नहीं लगा। यूं संसार में रह आया हूं। काजल की कोठरी से गुजर आया हूं। और यह तेरी चादर देख! यह ले सम्हाल, अपनी चादर ! ज्यों की त्यों रख दीन्हीं चदरिया ! साक्षी भाव में ही जीए! संभोग भी साक्षी भाव में ही! इसलिए अपने बेटे को नाम दिया कमाल ! और साक्षी भाव में बेटा पैदा हो, तो कमाल तो है। और बेटा फिर कमाल का ही होगा। कमाल का ही था । कबीर ने कम से कम जन्म भी दिया कुछ, सिलसिला भी छोड़ा। लेकिन कमाल ने सिलसिला भी नहीं छोड़ा किसी को जन्म ही नहीं दिया। बूढा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल! ऐसा सपूत पैदा हुआ कि बात ही खतम कर दी। उसने सिलसिला ही तोड़ दिया। उसने कहा, अब क्या चलाते रखना सिलसिले को ! इस संसार को क्यों बढ़ाए चले जाना ! यह उस दिन कबीर ने कहा था, जिस दिन कमाल ने यह बात जोड़ दी थी कि इतना जोड़ दें और कि जिसने बीच की कील के सहारे को पकड़ लिया, वह बच गया। Page 12 of 255 दो पाट हैं-- अतीत और भविष्य के, और बीच में कील है-- वर्तमान । साक्षी भाव का अर्थ होता है -- वर्तमान में ठहर जाना। न अतीत रह जाए, न भविष्य । फिर क्या बचा ? तुम्हारे पास अतीत और भविष्य के सिवाय और क्या है? कुछ भी नहीं । अतीत गया- भविष्य गया--कि शून्य बचा। उस शून्य में सिर्फ प्रकाश है; सिर्फ बोध है; सिर्फ होश है; कोई विषय नहीं है। दर्पण है, लेकिन दर्पण में कोई छवि नहीं बनती अब कोई पराया नहीं, कोई दूसरा नहीं, कोई दूजा नहीं । साक्षी है, लेकिन कोई साक्षी के सामने नहीं द्रष्टा है, लेकिन दृश्य कोई भी नहीं है। जानी है, लेकिन ज्ञान के लिए कुछ भी नहीं बचा। http://www.oshoworld.com

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