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वडे २ तीर्थयात्रा के संघ निकाल । वडे भव्य और विशाल जैन मदिरो का निर्माण और जीर्णोद्धार करवाया। हजारो प्रतिमाओं की जिनराजसूरि जी के हाथ से प्रतिष्ठा करवाई। जेसलमेर के थाहरूशाह ने लोद्रवेके चिंतामरिण पारवनाथ जिनालयका जीर्णोद्धार करवाया अहमदाबाद के सघपति सोमजी के पुत्र रूपजी ने शत्र जय पर चतुर्मुख,रिषभ आदि ५०१ प्रतिमाएं और जिनालय की प्रतिष्ठा करवाई। भागवड मे चाँपसी साहने अमीझरा पार्श्व नाथ आदि ८० विम्बो की प्रतिष्ठा करवाई। मेडते के चोपड़े मासकरण ने शातिनाथ मदिर की प्रतिष्ठा करवाई। इस तरह जिनराजसूरि बडे ही प्रभावशाली, विद्वान आचार्य हुए है। जिनकी फुटकर रचनाप्रो और दो रासो को इस ग्रथ मे प्रकाशित किया गया। आपकी रचनामो का सक्षिप्त विवरण आगे दिया जा रहा है।
जिनराज सूरि को साहित्य-सेवा
प्राचार्य जिनराजसूरि जी अपने समय के विशिष्ट विद्वान और सुकवि थे । रासकार जयकीर्ति और श्रीसार दोनो ने उनकी कुशाग्र बुद्धि अध्ययन के सम्बध मे अच्छा प्रकाश डाला है। उनके वाल्यकाल के अध्ययन के संबध मे श्रीसार ने लिखा है।
पुत्र भरणइवा माडियइ, पण्डित गुरुनइ . पाय । .. विद्या प्रावो तेहनइ, सरसति मात पसाय ॥१॥ भली परइ आवी भले, सिद्धो अनइ समान । "चाणाइक" आवइ भला, नीति शास्त्र असमान' ॥२॥ तेह कला कोइ नही, शास्त्र नहीं वलि तेह । विद्या ते दीसइ नही, कुमर नइ नावई । जेह ॥३॥ कला 'बहुत्तरि' पुरषनी, जागइ राग 'छतीस'। कला देखि सहको कहइ, जीवो कीड़ि वरीस ॥॥
(त)