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| জিলুহুজাতি জুনি-ইদ্ভুিজাজা
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श्री वर्तमान जित चतुविशतिका
(१) श्री आदिनाथ गीतम्
देश-बांह समापउ वाहुजी मन मधुकर मोही रह्यउ, रिषभ चरण अरविंद रे। ऊडायउ ऊडइ नही, लीणउ गुण मकरंद रे ॥१॥म०॥ रूपइ रूड़े फूलडे, अलविन ऊडी जाइ रे । तीखा ही केतकि तणा, कटक आवइ दाइ रे ।।२।।म०।। जेहनउ रंग न पालटइ, तिणसुमिलियइ धाइ रे । संग न कीजइ तेह नउ, जे काम पडयां कुमिलाइ रे॥३॥म०॥ जे परबस वंधन पडयां, लोकां हाथ विकाइ रे। जे घर घर ना पाहुणा, तिण सुमिलइ बलाइ रे॥शाम०॥ चउविह सुर मधुकर सदा, अणहू तइ इक कोडि रे। चरण कमल 'जिनराज'ना, सेवइ वे कर जोड़ि रे॥शाम०॥