Book Title: Jinrajsuri Krut Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 303
________________ २४० जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि बोल फव्यउ मोटउ खरतर गछि, सह जागइ संसार ||४०॥ संवत सोल छिहत्तरा वरसइ, वैसाख सुदि शुभवार । सरव सिद्धा त्रयोदशी दिवसइ, प्रतिष्ठा चउमुख सार ।।४१|| पुण्यवत रूपजी संघवीयइ, प्राणीमन माहि भाव । परतिष्ठा आठमइ उद्धारनी, करावइ तिरा प्रस्ताव ॥४२॥ सिद्धाचल ऊपरि आगे हूबा, सात उद्धार उदार। बड़वखती जिनराज प्रतिष्टइ, पाठमउ ए उद्धार ||४३|| उद्धार तणी प्रतिष्ठा करताँ, अस्वी थयउ गुरु नाम । रूपजीयइ परिग राख्यउ नामउ, करतइ मोटउ काम ॥४४॥ परिघल द्रव्य देइ स तोषो, भोजिग चारण भाट । मारू स घ अनइ गुजराती, आयउ घरि बहि बाट ॥४५॥ तिहाँ थी श्री जिनराजसूरीसर, सघ सुकरी विहार । नवइ नगरी प्रावीनइ सदगुरु, चउमासउ करइ सार ||४६॥ करावी भागवडइ साह चापसी, विब प्रतिष्ठा जेह । अमीझरयउ विव देह तिहा करिण, श्री गुरु महिमा तेह ॥४७॥ मेडतइ आसकर्ण तेडावी, भट्टारक जिनराज । शांतिनाथ परतीठ करावइ, सोल सतहोत्तरइ आज ॥४८॥ बीकानेर चउमास करीनइ, सिधु देस वदावइ । मुलतारण मरोठ फतेपुर देरा, श्री संघ साम्हउ आवइ ।।४६।। मुलताणी स घ घराउ धन खरचे, लीघउ सबल सोभाग। गरणधर सालिभद्र नइ पारिख, तेजपाल वडभाग ।।५०॥ संघ करी जिनराजसूरीस नइ, करावइ दादा जात्र। देराउरि जिनकुशल सूरीसनी, पोषइ उत्तम पात्र ॥५॥ सिधु देसि जस सवलउ लेई, मानवी पांचे पीर। बीकानेर नगर पधारया, श्री गुरु साहस धीर।।५२ ।। करमसी साह तेड़ाया आया, रिणी करी चउमास । जेसलमेरे पंधारथा श्री गुरु, बीजी चार उल्लास ||३||

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