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जिनराज सूरि कृति कुसुमांजलि
श्रमित्ररा पोश्व जिन स्तवन
परतिख पास अमीरउ, भेटीजइ अभिप्ररण भावइ रे ।
राति दिवस अमृत भरइ, तिरण साचड नाम कहावइ र ||१||१०|| भगतवछल निज भगतनइ, दाखी दरसरण परिचावइ रो |
तउ थे सेवइ स्या भरणी जउ, परतउ भूल न पावइ रो || सपना पण परगट थई, सेबक नउ वान वधावइ रे ।
कारिज करवा करइ, ते परनइ केम भलावड़ रे || ३|०|| पुरिसादारणी पास जी, जऊ इम प्रतिसय न दिखाव रे । इरिण कलजुग रा मानवी, तउ जात्र करण किम द्यावइ रे || ४ ||प० एकरिण रहणी जे रहइ, नित चरण कमल चितलाव र े । सकल मनोरथ तेहना, प्रभु अलवि प्रमाण चढावइ से || ||०|| प्रभु विण देव अनेरडउ ते माहरइ मनि न सुहावइ । सुरतरु गरिए जउ फलइ, तर कवरण कनकन खावइ र े || ६ ||५० प्रलिम विघन दूरइ हरइ, परिश्रण नइ आरण मनावइ श्री 'जिनराज' सदा जयउ, इम दिन दिन चढ़नइ दाबइ र ॥ ७॥ प०
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इति श्रीभारगवड नगर मंडन भट्टारक युगप्रवान श्री जिनराज सूरि प्रतिष्टित श्री श्रमिश्रझरा पार्श्व जिन स्तवनं
( पत्र १ वृहत् ज्ञान भंडार वीरजी सं० ब० १६ )
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