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पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध २२ साभली
साभली ___ ९४ १० वयु
राज धार होत मन मिलइ... प्रमूरगउ राज जीव होत अधीर
मिलइ सीयण मुरण उ ८६ १८ प्रारण
प्रागइ पारण ८८६ पति
पति ६१ विशेष.-कूड कपट करत जिन कारण, सो परिवार विर ग ।
स्वारण विणु सब छेह दिखावत, तरुवर जेम विहग ।।४।। ___६४ १४ ने उखार
उरबार १०२ कउन
कोउ १०४ २१ करि
करिहु पइमज हथ इजाजित प्रेम जहर तइ
जाजत करउ के
करउगे रहत
कहत निकस
निकसत १११ ७ अच ११७८ जिझ ११७ २३ नगर
नरक १२० १३ पते न्याय
पोते न्याय कहिय विर
कइयइ वीर ५-६ ठो गाथाएं डवल आ गई हैं अलिवि
अलवि १२१ १३ जाजगृह
राजगृह , दाजीय
दीजिये १२६ ४ भी भीनो
१०६
१०६
११०
निज
भीनो