Book Title: Jinrajsuri Krut Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 306
________________ श्री जिनराजसूरि रास. रापड़ी पूनम दिनइ रे, श्री पूज्य नउ रे, रास भण्यउ मई शुभ मनइ रे || ३ || चि० खरतर गछि रे जुगप्रधान जिनच दजी रे 'सकल व 'द' तसु सोस | 'समयसुन्दर' पाठक वरू रे, वादी राय रे 'हर्षनन्दन' आण दकरू रे ||४॥ चि ॥ तसु सीसइ रे 'जयकीरति' रलियामरणउ रे. रास कीयउ सुजगीस । जिनराजसूरि नउ रे मनि प्राणी रे । 1. २४३ भाव अधिक गुरु राज नउ रे ||५|| चि० गुरुनउरे रास भरणइ सोहामरणउ रे, साभलइ जे नरनारि । नव निधितसु तणी रे, जयकीरति रे, श्री दिन दिन महिमा प्रति घणी रे ||६|| चि० ॥ - इति श्री श्री श्री श्री श्री जिनरालसूरीश्वराणा रासः it ग्रंथा० २५५ ( साधा ) कृतश्च पंडित जयकीर्ति गरिणा । श्री जेसलमेर नगरे || शुभभवतु । लेखक पाठकयोः ।। लिखितोय श्री जेसार नगरे || श्री स्तात् ॥ [पत्र २ से ८, श्री अभय जैन ग्रंथालय प्रति न० ७६१३ ] 1

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