Book Title: Jinrajsuri Krut Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
View full book text
________________
श्री जिनराजसूरि रास
२३६
लाभ जारणी नइ चालइ जेहवइ, तेहवइ करमसी साह । महियलि मोटिम माल्हू अरजुन, स घ करइ उच्छाह ॥२७॥ बेई सघ करीनइ चाल्या, गहमह सबल दिवाजइ । भट्टारक जिनराजसूरीसर, साथि सोभा काजइ ॥२८॥ गामि गामि लाहरिण परभावना, देता वछित दान । माया एम सेत्र जइ तीरथ, देखी धइ बहुमान ।।२६।। स घ चढी पुडर गिरि ऊपरि, भेट्या मोदि जिणद । रायण तलि पगला पूजीनइ, पाम्यउ परमारणंद ॥३०॥ मु छाल भुजाल हाथाल देईधन, फरसी तीरथ सार । संघवी करमसी अरजुन प्रापरणउ, सफल कीयउ अवतार ||३|| हिव एक बात सुरगउ सह कोई, रूप जी साह अधिकार। सोमजी साह सिवा वे बांधव, खरतर श्रावक सार ॥३२॥ व तुपाल तेजपाल तणा पाज, परतखि ए अवतार। एह तरणी उत्तम छइ करणी, कहता नावइ पार ।।३३।। स बत सोल चिमाला वरसइ, शत्र जय स ध कराया। अवह मारग जेणइ वहराया, पुण्य भडार भराया ॥३४॥ वले प्रतिष्टा सवल करावी, अहमदाबाद मझारा। खभायत पाटण सघ तेडया. पहिराया सुप्रकारा ॥३॥ राणपुरि गिरनारि सेरीसउ, गउड़ी पाबू जात्र । सहु तीरथ ना संघ कराया, पोष्या साहमी पात्र ॥३६॥ खरतर गच्छ मई सगले देसे, लाहिरिण कीधी एह । घरि घरि दीपउ आघउ रूपईयउ, बूठउ जाणे मेह ।।३७॥ साहमी नइ वलि वेढ सोना ना, पहिराव्या बहुधार। सेत्र ज ऊपरि चैत्य करायउ, सातिनाथ सुखकार ॥३८॥ सोमजी साह तरणा सुत उत्तम, रतनजी रूपजी जाण । रतनजी पुत्र सुदरदास सिखरा, दीपता दड दीवारण ||३|| रूपजी साह करायउ भाठमउ, सेत्रज नउ उद्धार ।

Page Navigation
1 ... 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335