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श्री जिनराजसूरि रास
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लाभ जारणी नइ चालइ जेहवइ, तेहवइ करमसी साह । महियलि मोटिम माल्हू अरजुन, स घ करइ उच्छाह ॥२७॥ बेई सघ करीनइ चाल्या, गहमह सबल दिवाजइ । भट्टारक जिनराजसूरीसर, साथि सोभा काजइ ॥२८॥ गामि गामि लाहरिण परभावना, देता वछित दान । माया एम सेत्र जइ तीरथ, देखी धइ बहुमान ।।२६।। स घ चढी पुडर गिरि ऊपरि, भेट्या मोदि जिणद । रायण तलि पगला पूजीनइ, पाम्यउ परमारणंद ॥३०॥ मु छाल भुजाल हाथाल देईधन, फरसी तीरथ सार । संघवी करमसी अरजुन प्रापरणउ, सफल कीयउ अवतार ||३|| हिव एक बात सुरगउ सह कोई, रूप जी साह अधिकार। सोमजी साह सिवा वे बांधव, खरतर श्रावक सार ॥३२॥ व तुपाल तेजपाल तणा पाज, परतखि ए अवतार। एह तरणी उत्तम छइ करणी, कहता नावइ पार ।।३३।। स बत सोल चिमाला वरसइ, शत्र जय स ध कराया। अवह मारग जेणइ वहराया, पुण्य भडार भराया ॥३४॥ वले प्रतिष्टा सवल करावी, अहमदाबाद मझारा। खभायत पाटण सघ तेडया. पहिराया सुप्रकारा ॥३॥ राणपुरि गिरनारि सेरीसउ, गउड़ी पाबू जात्र । सहु तीरथ ना संघ कराया, पोष्या साहमी पात्र ॥३६॥ खरतर गच्छ मई सगले देसे, लाहिरिण कीधी एह । घरि घरि दीपउ आघउ रूपईयउ, बूठउ जाणे मेह ।।३७॥ साहमी नइ वलि वेढ सोना ना, पहिराव्या बहुधार। सेत्र ज ऊपरि चैत्य करायउ, सातिनाथ सुखकार ॥३८॥ सोमजी साह तरणा सुत उत्तम, रतनजी रूपजी जाण । रतनजी पुत्र सुदरदास सिखरा, दीपता दड दीवारण ||३|| रूपजी साह करायउ भाठमउ, सेत्रज नउ उद्धार ।