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जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि
चिहु ए मठाई प्रतिमा पूजइ, चारिसय चारिहजार ||१३|| नीलक मुखमल दरियाई, जवाफ मन उल्लास । तेह तरणी धजा चाढी साते, देहरइ दीसइ खास ||१४|| गीतारथ गुरु पासि सिद्धान्तना, सांभलइ अरथ विचार । त्रिरि कालि कर पूजा देहरासरि, समरइ नित नवकार ||१५|| इत्यादिक सवली घ्रम करणी, करतउ थाहरुसाह । पुण्यवत परतीठ करावइ, चोखइ चित घरी चाह ॥ १६ ॥ सवत सोल पंचोत्तर वरसइ, मगसिर सुदि सुभवार । सिद्धियोग बसि सुभ दिवस, मुहुरत प्रति श्रीकार ॥१७॥ तिहाँ कारण श्री जिनराजसूरीसर, करइ प्रतिष्ठा सोर | सहसफरणा चितार्मारग वेई, पारसनाथ सुखकार ॥ १८ ॥ बीजा परिण विव प्रतिष्ठा माड्या, लोद्रपुर देहरा माहि । मूलनायक चितामरिण स्वामी, सघनइ करइ उछाह ॥ १६ ॥ तेरिण समय इद्रमाल अनोपम, बि सय रूपईया देई । लोधी जीदइ साह उच्छाह सुं, मन मइ भाव घरेई ||२०|| श्री जिनराजसूरि पहिरावइ, साहनइ आपरगड हाथि । सकल महाजन माँहे सोहइ, जीवराज सुत साथ ॥२१॥ देस प्रदेस नउ सघ घरगउ मिल्यउ, राउल श्री कलियाग | राज लोक कुमार सु श्रवइ, संतोषरण श्रव जाण ||२२|| अवसर जारिण थिरु भरणसाली, वरसइ सोवन धार । तिहु रूपईए असरफी नारगउ, लाहइ वड दातार ॥२३॥ सतोप्य द्रव्य देई भाउ, राउल कल्याणदास । भोजिग भाट चारण जे मिलिगया, तेहिनी पूरइ आस ||२४|| जाचक दे आसीस प्रतीठइ, लीघउ सबल सोभाग । हरराज मेघराज स घाति, चिरजीवे बडभाग ॥|२५|| भट्टारक 'जिनराजसूरीसर, एह प्रतीष्टा कीधी । तेहवइ स घपति रूपजीनी चीठीं, नफरइ श्रारणी दीधी ||२६||
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