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श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ गीत
श्री 'संखेसर' पास जिरणेसर, जे सरभर सुर को न छइ । नयणे निरखउपरतिख परखउ, परखउ लीकहि सउपछइ ॥३॥ आप वसू रति थयइ सूरति, सूर तिसी परि पूजीयइ । तिम गुण गावउ भावन भावउ, पावउ मुमति वधू जीयइ ॥४॥ आणइ वेधन खरचइ जे धन, ते धन धन जगि जाणीयई। कुमति खोजि न आण इसी जिन, श्री 'जिनराज'वखाणीय॥५॥
श्री संखेश्वर पाश्र्वनाथ गीत
राग-सामेरी पासजी की मूरति मो मन भाई। पग पग मग पंथियन कुपूछत आए तोकु ध्याई ॥१॥१०॥ आसापरण निज भगतन की तवही दइति दिखाई। कउण विचार परे हम बरिया, इतनी वेर लगाई ॥२॥प०॥ मोकु कहा विरुद अपणइ की, आपहि लाज बड़ाई। 'सखेसर' मंडण दुख खंडण, देह दरस सुखदाई ॥शाप०॥ मानव दानव कोइ' न मेटत, दुनिया मांहि दुहाई। "राजसमुद्र' प्रभु श्री जिनसिंहसूरि' सेवत संपति पाई॥४०॥
श्री सहसफणा पार्श्वनाथ गीतम्
राग-केदारउ देखउ माई पूजा मेरे प्रभु की अजब बणी रे,
या छबि वरणी न जाइ। जोवत जोति नई नई अलख सरूप रे,
मो मन अधिक सुहाइ ॥१॥०॥ कुंकुम को अंगी रची, विचि विचि कुसुम भराउ।