Book Title: Jinrajsuri Krut Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
View full book text
________________
२३६
जिनराजसूरि-कृति - कुसुमांजलि
खरचइ धन ग्रासकरण्ण, जागे दूसरउ राजा करण्ण । पोषइ वलि चार वरण्ण, महिमागर मोटइ मण्ण ||१०|| जिगरइ घरि आदि बडाइ, माला से ग्राम सवाई | दीपकदे कउ सुखदाई, कचरइ सहु करणी दीपाई ॥ ११ ॥ उदयव त, अमरसी तात, स घवरिण अमरादे मात । अजाइवदे नारि कहात, इम आसकरण विख्यात ॥१२॥ अमील कपूरहचदह, भाई जेहनइ निरद द | कंधोधर सुवखना कद, सेव करइ नर वृंद ॥१३॥ ऋषभदास सूरदास, पुत्र वेई बुद्धि निवास | सुख भोगवइ लील विलास, ईहरगाँ नर पूरइ ग्रास ॥ १४ ॥ प्रसिकररण इंद्र अवतार, चोपडा व सइ दिनकार | बड वखती वड़ दातार, जाणइ सगलउ संसार ||१५|| सेत्र ं जइ संघ चलायउ, घरे सत्र कार में डायउ । देहरउ सखरउ कारायउ, धमकरणी कुल दीपायउ ॥ १६ ॥ पद ठवरणइ दीजइ दान, साहमी पामइ सनमान | संघवी प्रसरण प्रधान, बसुधा मांहि वाध्यउ वान ॥ १७ ॥ ॥ दूहा ॥
[ सर्व गाथा १७१ ] देस प्रदेशे सांभली, पदठवरणउ विख्यात । संघ सहू हरपित थयउ ए थई जुगती वात ॥ १ ॥ भट्टारक पद पामिनइ, सूरीसर जिनराज । सुख समाधि मइ भोगवइ, खरतर गच्छ नइ राज || २|| तेड़ाव्या तिरिण अवसरइ, राउल कल्याणदास । जेसलमेर पधारि नइ, श्रीसंघ पुरउ श्रास ॥३॥ लाभ जाणि आग्रह थकी, तिहाँ थी करी विहार । देस व दावी आविया, जेसलमेरि मार ||४|| [- सर्व गाथा १७५ ]
?

Page Navigation
1 ... 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335