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जिनराजसूरि-कृति - कुसुमांजलि
खरचइ धन ग्रासकरण्ण, जागे दूसरउ राजा करण्ण । पोषइ वलि चार वरण्ण, महिमागर मोटइ मण्ण ||१०|| जिगरइ घरि आदि बडाइ, माला से ग्राम सवाई | दीपकदे कउ सुखदाई, कचरइ सहु करणी दीपाई ॥ ११ ॥ उदयव त, अमरसी तात, स घवरिण अमरादे मात । अजाइवदे नारि कहात, इम आसकरण विख्यात ॥१२॥ अमील कपूरहचदह, भाई जेहनइ निरद द | कंधोधर सुवखना कद, सेव करइ नर वृंद ॥१३॥ ऋषभदास सूरदास, पुत्र वेई बुद्धि निवास | सुख भोगवइ लील विलास, ईहरगाँ नर पूरइ ग्रास ॥ १४ ॥ प्रसिकररण इंद्र अवतार, चोपडा व सइ दिनकार | बड वखती वड़ दातार, जाणइ सगलउ संसार ||१५|| सेत्र ं जइ संघ चलायउ, घरे सत्र कार में डायउ । देहरउ सखरउ कारायउ, धमकरणी कुल दीपायउ ॥ १६ ॥ पद ठवरणइ दीजइ दान, साहमी पामइ सनमान | संघवी प्रसरण प्रधान, बसुधा मांहि वाध्यउ वान ॥ १७ ॥ ॥ दूहा ॥
[ सर्व गाथा १७१ ] देस प्रदेशे सांभली, पदठवरणउ विख्यात । संघ सहू हरपित थयउ ए थई जुगती वात ॥ १ ॥ भट्टारक पद पामिनइ, सूरीसर जिनराज । सुख समाधि मइ भोगवइ, खरतर गच्छ नइ राज || २|| तेड़ाव्या तिरिण अवसरइ, राउल कल्याणदास । जेसलमेर पधारि नइ, श्रीसंघ पुरउ श्रास ॥३॥ लाभ जाणि आग्रह थकी, तिहाँ थी करी विहार । देस व दावी आविया, जेसलमेरि मार ||४|| [- सर्व गाथा १७५ ]
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