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जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि
एकणि वार गमाया गयवर, चउद सs चिउं आल जी । कर्म वसे ते भिक्षा मागर, जूओ मुज भूपाल जी ॥ क० ॥ १८ ॥ मागइ,जूओ मुनि वचने वभिण रधावी, माजरि मिश्रित खीर जी । सेठि तनय तेहिज जोमीनइ, राजा थायै सुधीर जी ॥ क०१६ नापित घरि दासी नो बेटउ, जाति हीन कुल मंद जी । ते पालि नयर नो सामी, नवमु नंद नारद जी ||२०||क० ॥ सुर पचवीस सहस निसि वासर, रहिता जेहने पास जी । ते सभूम लवरण सायर विचि,
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वहतौ गयो निरास जी ॥ क० ॥ २१ ॥
दोभागी पूरब भव हुतौ, नदिषेण इणे नाम जी । स्त्री वल्लभ वसुदेव कहांणउ, करम तणा ए काम जी ||२२क रिषभदेव, त्रिभुवन तो नायक, लीधो निरुपम दोख जो ।
वरस लगइ आहार न पाम्या,
करम दीयइ इम सीख जी || क० || २३ ॥ प्रसन्नचंद रिषि काउसग मांहि, नरक तरणा दल मेलि जी । ततखिण निर्मल केवल पामी, करम करइ इम केलि जी ॥ २४क मृगापुत्र पल पिंड उपल सम पूरब करम विशेष जी । कडुआ कर्म विपाक कहीजइ, चिते गौतम देख जी ॥क०२५ ॥ चारुदत्त योगी उपदेसै, पइठउ विवर मझारि जी ।
तउ पिण धन लवलेस न लीघउ, कीधा कोडि प्रकार जी ॥ २६क हरिहर ब्रह्मादिक योगीसर राजा ने वलि रांक जी । विविध प्रकारे कर्म विटबी, न करइ केहनी सांक जी ॥२७क करम लिखत सुख सपति लहीइ, अधिक न कीजइ सोस जी ।