Book Title: Jinrajsuri Krut Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
View full book text
________________
२२४
जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि
श्रावासे सात भूमीए, वछ, गळ्या गउव म डारण | सयन करइ तिहा सुख भरणी, वछ, जेठ माम जगि जारण ॥ २ / सु०॥ रवि साम्ही आतापना, बछ, करता दिवम विहाय ।
रातइ भूमि स थारडइ वछ, केलि गरभ सम काय ||२५|| सु०॥ वाला खाने वइसब, व, वीजण वीजइ वाय । फूल्या फूल गुलाब ना, वछ, मोटी दाम सुहाय ॥ २६ ॥ सु०॥ ईरेज्या समता चालतां वछ, जाइवउ गोचर काज । कच नीच घरि वहिरवउ, बछ, जेम कहउ जिनराज ||२७|| मु०|| ढाल - धरम हीयइ धरउ, पहनी
मानक सुरण मातजी रे, नहीय करू गृहवास |
माया दीस कारिमी रे, तिरण सुरौं केही आमो रे ॥ २८स जम प्रद तणु धन योवन कारिमउ रे. स्वारथ सहु परिवार ।
खिरण खिरण छोजइ आउखउ रे दीसइ सहु प्रमारो रे | २६सं० ॥ इम जारणी माता पिता रे, दीघउ व्रत आदेस ।
श्रादरसु श्री गुरु कन्हइ रे, ल्यइ मुनिवर नउ वेसो रे ||३०||स०॥ ग्रहरणा नइ आसेवना रे, सीखाइ सिख्या सार ।
अनुक्रम चवद विद्या तरणउ रे, मुनिवर थयउ भडारो रे || ३१ ० युगप्रधान गुरु थापिया रे, अकवर साहि हजूर ।
'करमच द' कुलच दलउ रे, उच्छव करइ पडूरो रे ||३२||स० ॥ श्री जिनसिंहसूरीसरू रे, दिन दिन अधिकइ नूर । त्रिकरण सुद्ध वादता रे, दुख जायइ सहु दूरो रे ॥ ३३ ॥ स ० ॥ साहि सलेम प्रतिबोधनइ रे, वरतावी रे श्रमारि । छम्मासालगि त्रिहु खडे रे, जागइ सहु स सारो रे ||३४|| स ० ॥ 'जेसलमेरू' जगि परगड़उ रे, राउल भीम सुजाण ।
स वत सोलई चउसठइ (१६६४) रे, नमि कातिक र्वाद जारगो रे || ३५स० मनसु भगत गावतां रे, अधिक हुइ आरणद । 'राजसमुद्र' मुनि इम कहइ रे. प्रतपउ जाम गिरिदो रे || ३६ || स ० ॥ इति श्री गच्छाधीश्वर श्री जिनसिंहसूरि राजानां द्वादसमास वर्णनम् समाप्तं पंडित लब्धिकुर मुनिना लेखि । पत्र २ सग्रहमे नं०७६१२

Page Navigation
1 ... 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335