Book Title: Jinrajsuri Krut Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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जिनराजसूरि-ऋति कुसुमांजलि
दीक्षा नउ भाव ऊपनउ, मुझ नइ तिणि प्रस्ताव । दयउ आदेश तुम्हे मुनइ, ल्यु दीक्षा सम भाव ||४|| चलती माता इम कहइ, वच्छ सुगउ वड भाग । जोवन वय सुख भोगवउ, नही दोक्षा नउ लाग ||५|| दीक्षा नी वात दोहिली, सांभलता परिण कांनि । भोगवि भोग पछइ दीक्षा, लेज्यो वचन ए मानि || दुकर दक्षा पालता, लेता सोहिली होइ। लेई नइ रूड़ी परि, पावइ विरला कोइ ।।७॥ वच्छ कहइ सुरणउ मात जी, जे तुहे कहउ ते साच । कायर कापुरसाँ नरां, दोहिली दीक्षा वाच ॥८॥ सूर वीर जे साहसी, अतुली बल महाधीर । व्रत दुक्कर नहीं तेहनइ, जां लगि धरइ सरीर ॥ वाला जायइ वात मइ, वलती नावइ तेह । धरम बिलंब करइ नही, पुण्यवंत नर जेह ॥१०॥ मात पिता देखाडीयउ, घराउ संसार नउ लोभ । तउ पिण कुमर रहइ नही, हिव दिक्षा लेतां सोभ ॥११॥ सहगुरु परिण समझाविनइ, चीतराव्यउ निज बोल। व्रत आदेस दीयउ हिवइ, दीक्षा ल्यइ र ग रोल ॥२२॥
[सर्व गाथा १०२]
साल-पांचमी. राग-मारूणी जाति-जीतउ जीत हो यदुपति
राय पसुदेव करउवधामणारे पहनी कीजउ कीजउ हो उच्छव माज दीक्षा नउ रूडी परि हो। परमसी साह नइ वारि गह मह सबल थइ घरि हो ॥१॥की०॥ पंडित जोसी पूछि कीधी मुहूरत थापना हो। . तपतोदक न्हवराय कुमर नी सहु फली कामना हो ॥२॥की०॥ पापड नठ वरणाव करि पहिरइ पाभ्रण भला हो। .

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