Book Title: Jinrajsuri Krut Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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श्री जिनराजसूरि रास
माथइ मउड़ सुचौंग, कांनि गंठोड़ा जोडला हो ॥शाकी॥ उरि मोतिन कउ हार, बांहि मनोहर बहिरखा। बाजूबंद सोवन्न दसे, आगुली वेढ सारिखा हो।।४।।की०॥ कडिए कंचण दोर, पाए वाजइ घूघरी हो। विनायक वयसारि, लाहइ लापसी घूधरी हो ॥शाकी०॥ भाल तिलक सुविशाल, अंजन आखे सोहियउ हो। कुमरइ सोल शृंगार, कीधा जन मन मोहियउ हो ॥६॥की। तिलका तोरण बारि, घरि घरि मांड्या मांडणा हो । सहु महाजन मेलि, कीधा केसरि छांटरणा हो ॥७॥की०॥ तरल तुरंगम आरिण, ऊपरि कुमर बइसारीयउ हो। फिरइ वरनोला एम, सकल कुटंब परिवारियउ हो ॥की०॥ सूहव गायइ गीत, ताजा नेजा फरहरइ हो। ढोल सबल नीसाण, नादइ अबर घरहरइ हो पाकी०॥ बाजइ ताल कंसाल, भेरि नफेरी हूकलइ हो।। सखि झालरि झरणकारि, ऊची गूडी ऊछलइ हो ।।१०।की। भोजिग चारण भाट, कुमर तरणउ जस ऊचरइ हो । वरनोलइ फिरि गाम, पोसालइ भावी ऊतरइ हो ॥१॥की०॥ वांदइ गुरु ना पाय सघव वधू करि गूहली हो वास लेई सुणि श्लोक, कुमर भावइ धरि मनरली हो ॥१२॥को इणि परि सगलउ संघ, दयइ वरनोला निज घरा हो। प्राड बर मास सीम, कीधउ अति हरखी धरा हो ॥१३॥की। स वत सोल सतावनइ, मगसिरि वदि दसमी दिनइ हो। सबली नांदि म डावि, लोधी दीक्षा शुभ मनइ हो ॥१॥की०
[सर्व गापा ११६
॥ हो । तिहां दीक्षा लेई नइ, मुनिवर करइ विहार । सीखावई सिक्षा दुविध, जिनसिंहसूरि गराधार ।।

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