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सुदर्शन सेठ सज्झाय
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करइ सजाइ सघवी, भेटण गढ गिरनार । स घ प्रवर 'तब' वीनवइ, मारग विषम अपार ।। अति विषम मारग आकरी रितु, नीर लागइ तिहा तरणउ । समझावि इण परि संघ आवी, पास भेटण थभराउ ।। निज न्याति साहमी घरे लाहिण दियइ पुर पुर नवी । मारगइ तीरथ अवर भेटी, घरे आवी स धवी ॥१५॥ श्री खरतर गच्छ चिर जयउ, परगल पुण्य पडूरि । गरुयउ गछनायक जयउ, जुगवर जिणसिंघसूरि ॥ युपवर जिणच दसूरि पाटइ, दिवसपति प्रोपम धरइ । धनवत श्रावक पुण्य करणी, मोकलइ मन इम करइ ।। धन गछ खरतर सुगुरु श्रावक मुजस महिम डलि थयउ । गिरि राजसमुद्र दिरिंगद ता लगि,श्री खरतर गछ चिरजयउ ॥१६॥
__ इति श्री तीर्थ यात्रा मार्ग निरूपक गीत । ( पत्राक तीसरा हमारे संग्रह मे)
सुदर्शन सेठ सज्झाय जी हो कूड कपट तिहाँ केलवो, जी हो तेडावी घर माहि । कामातुर वचने थई, जोहो कपिला बिलगी वाहि ।।१।। सुदरसरण धन धन तुम अवतार । जो हो सील रतन जतने करी, जी हो राख्यउ च्यारे बार रसु०॥ जी हो सेठि कहइ मुझनइ हतो, जी हो कहि कदि पुरुषाकार । जी हो रूप रूडे फू लडे, जी हो राचं कवरण गिवार ||सु०॥ जी हो हाथ विन्हे धरती पड्या, जी हो सबल लजागी तेह । जी हो ते तो पछतावइ पड़े, जी हो करइ विचार न जेह ।।४ासु०॥ जो हो गहि पूरित अभया कहे, जी हो कपिला नी बात । जी हो भोली तूतिणभोलवी,जी हो पुरुष रम्यो लहिघात ॥५सु०॥ जी हो तो हू जउ तेहने, जी हो हेलि मनावुहार।