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जिनराज सूरि - कृति कुसुमांजलि
घरि घरि उछव रंग वधामरणा रे, बांध्या तोरण वारि । राजभुवन मंगलघट माडिया रे, अधिक अधिक अधिकार ||४ |शु ॥ केसर कु कम मृग मद छाँटरणा रे, करता यादव लोक । माहो माहि वधाई प्रापता रे, वछित सगला थोक ||५||शु०|| चोर चरड जे हरि रोक्या हुता रे, अपराधी प्रति घोर । कारागार थकी ते काढिया रे धन आपी हरि शेर ||६|| शु० || किरण पासइ को रण मागइ नही रे, नवि को राखइ तेम | हाम पूर्वे हरि सिगला भरगी रे, तुरत देवतरू जेम ॥७॥० ॥ गाव गीत गुरगीजन प्रति घरणा रे, नाटक ना वहु भेद । करता केलि कतूहल बहु परइ रे, धरता चित्त उमेद || || शु० ॥ हरख भरड सहुजन विमरणा थका रे, लोक कहइ ते न्याय । पहिली * लांबी नगरि द्वारिका रे, पिरण नर-नारि न माय ॥०॥ कवि जन मन कलिपित कलपना रे, मत को जागउ एम । पाधरसी पिए राजा ग्राचरइ रे. यथा सगति विधि जेम ||१० शु० माता सुख पामइ सुन दरमरणइ रे, अचरिज स्यउ इरण वात । नगर लोक नी साँभलतां सुखइ रे भेदी साते धात ||११|| शु०॥ दस दिन माहे जे करणी हुवइ रे ते ते सगली कीध । दय दर कार थयउ याचक भरणी रे, मन वछिन धन दीव ॥ १२० दिवस वारमइ सुभपकवान मू रे, पोषी परजन न्यात । मात पिता कर जोडी इम कहइ रे ग्रागलि मन नी वात ॥ १३शु० हाथी नउ जिम होवइ तालुनउ रे तिमए सुत सुकमाल । नाम एह निरण तुम्ह साखर करों रे, गाउ गज सुकमाल ॥ १४० [ सर्व गाथा २१५ ]
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॥ दूहा ॥ वाघs कनकाचल विषइ, जिम धवल बीज नउ चाँदलउ, दिन दिन
* पिहुली Xयक |
सुरतरु अकूर । तेज पडूर ॥ १ ॥
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