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जिनराजरसूरि हति-फुसुमांजलि
जउ तुझ नइ किरणही सतायउ रे, तउ ते फल लहिम्यइ घर पायउ रे ॥
१ ० ॥ नगर लोक पिण तोमू गजी रे,
मोह घरगाउ परिण राग्वइ माजो रे ॥१८॥सु०॥ भावज मन उल्लासइ मुख जोई रे,
सहु को पीरजन हरखित होई रे ||१६|सु०॥ व्रत नउ काल नही छइ गरा रे,
जोवन एह अमोलक हीरा रे ॥२०॥"मु०॥ भोगवि भोग पछइ ग्रहि दिल्यारे,
श्री जिनवर नो पाले सिख्या रे ||२१||सु०॥ समय कियउ सगलउ ही सोहइ रे,
पावडिए मदिर आरोहइ रे ।।२२।मु० । ऊतावलि नउ काम न आछइ रे,
पछतावइ पडिथइ जिण पाछह रे ॥२३॥मु०॥ मात पिता वलि मोटा भाई रे,
___ सवधी पुर लोक सखाई रे ॥२४॥सु०॥ सह नइ पूछी कारिज कीजइ रे, मापण नउ हठ न वि तारणीजइ रे ॥२४॥मुगा
सर्व गाया ३८८] ॥ दूहा :-सोरठा।। हरि ना वचन सराग, ते पिण उर लागा नहीं। साच उ ए वइराग, गिरिगयइ गजसुकमाल नउ ॥२॥ मात पिता वलि भाय, विषय तरणी विध मुझ भरणी। कहइ घणु दीपाय, तिल भर मन मानइ, नही ।२।। अबला केरइ अंग, श्रोत अपावन नितु वहइ । गुरण तिरण सु करि सग, केहउ भाई जी कहउ ||३|| हरिनी लोपी कार, मात पिता मन चितवइ ।