Book Title: Jinrajsuri Krut Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई
१८६
इण अवसरि को ढोल म करिस्यउ,
कुण निबलउ कुरण रायो रे ॥११।।इ०॥ हरि आदेस अनइ सुकृत हरि, तिण सहु हरखित थायो रे। मेह तणइ आगम जिम मोरा, आरणद अगि न मायो रे ॥१२३०॥ जग उद्योत करण जगदीसर, भेटयाँ जागइ भागो रे । सह कोनइ मन माहे वधतउ, अधिक धरम नउ रागो रे ॥१३॥इ० एक एकथी चलता आगइ, भाव अधिक मन* मानो रे । देव तरणी परि नरवर सोहइ, चढिया यान विमानो रे ॥१४॥इ०॥ वरस सरस ए मास आस सुख, पूरण वासर खासो रे। पहर घडी पल अमृत सरिखउ,
क्षण + ए क्षरण सु प्रकासो रे ॥१५॥इ०॥ इम विचार करता मन माहे, लाखे गाने लोको रे। मारग माहे याचक जन नइ, देता वछित थोको रे ॥१६॥इ०॥ कृष्ण नरेसर वदन चालइ, चउविह सेना साथो रे। मेघाड वर छत्र विराजइ, चामर युगल सनाथो रे ॥१७॥३०॥ हरि नगरी माहे निकलता, सोमा रूप निहालि रे। चिंतव्यउ इण सारिखी कन्या, अवर न इण ससारी रे ॥१८||इ०॥ रूप अनइ जोवन लावन गुण, तीने अचरिज हेतो रे । जउ सारीखउ वर न मिलइ तउ, विधि नउ खोटउ वेतो रे ॥१९६०
[सर्व गाथा २६७]
॥ दूहा ।। कोटबिक पुरुषा भणी, तेडावी हरि एम । भाखइ देवानुप्रिया, वचन सुरगउ धरि प्रम॥१॥ जावउ सोमिल नइ घरे, कन्या मांगी एह । मुझ प्रतेउर मइ ठवउ, तुरत आपिसी तेह ॥२॥ बधव गजेसुकमाल नइ, रमणी जीव समान ।
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'नवि xदुख जहर + लक्षप क्षण, क्षण ए पिण

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