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श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई
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न कयउ एह नउ सासरउ कान्हइया,
करिसाँ तावड आज रे कान्हइया लाल ॥१६॥९० मोटी जगि । मइ मोहनी कान्हइया,
उदय थई मुझ आज रे कान्हइया लाल । बीजउ कोइ नवि लखइ कान्हइया, जागइ ते जिनराज रे कान्हइया लाल ॥१७॥हुँ।
[सर्व गाथा १८० ]
॥ दूहा ॥ एम सुरिण मन चितवइ, हरि इवडो अदोह । मातानउ मोटु नही, तउ न रहइ मुझ सोह ॥१॥ स्यउ मुझ नउ* समरथ परणउ, नवि फेडु दुख एह । माता तणउ जउx माहरइ, मुखि जन देस्थइ खेह ॥२॥ करि न दिखावु. जा लगइ, तां न मिटइ ए सोक । भूख न जायइ भामणइ, जागइ सिगला लोक ॥३॥
[सर्व गाथा १८३]
दाख-११ कोइलउ परबत धूधलउलो रे+- एहनी माता ना- आस्वासना रे लाल, आपी चितवइ एम रे वाल्हेसर। मात मनोरथ विरण फल्यां रे लाल,
सोभ रहइ मुझ केमरे वाल्हेसर ।।।। विनयवत नर सलहियइ रे लाल, साचा ते ससारि रेवा० । मात पिता गुरु ऊपरइ रे लाल,
. भगति धरइ निरघारि रे वा०॥३॥वि०॥ सकज (इ) पुत मावीतना रे लाल, पूरइ वछित कोहि रे वा० ।
"म्हारो xतो +कहिन किहां थी मावियो रे लान-एहनी -नद