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श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई
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प्रासुक जाया मइ छए कान्हइया,
इहा *करण मीन न मेख रे कान्हइया लाल ॥३॥है। ते वाध्या सुलसा घरइ कान्हइया,
. परतखि दीठा अाज रे कान्हइया लाल । वात सह माडी कही कान्हइया,
आपण पइ जिनराज रे कान्हइया लाल हुँ० सोल वरस छानउ वध्यउ कान्हइया,
तू पिण यमुना तीर रे कान्हइया लाल । नद यसोदा नइ घरि कान्हइया,
कहवागउ आहीर रे कान्हइया ।।शाहुँ । वाल्हेसर वारीजी ती कान्हइया,
तउ पिण माहे छह रे कान्हइया लाल । परव दिवस हूं प्रावति कान्हइया,
- मुख जोवा सुसनेह रे कान्हइया लाल ॥६॥हुँ० जाया मइ तुझ सारिखा कान्हइया,
एकरिण नालड सात रे कान्हइया लाल ! एको धवराव्यउ नही कान्हइया,
गोदी ले खिरण मात रे कान्हइया लाल ॥६॥है. हाथे उछेरघउ नही कान्हइया,
एको पुत्र रतन्न रे कान्हइया ला । नारि जाति माहे जोवता कान्हइया,
इवडी काइ अधन्न रे कान्हइया लाल हुँ. रे बोलडे कान्हइया,
पूरी कउनी असिरे कान्हइया लाल । पासा जूधी हू जिक्यु कान्हइया,
"दण किरण