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________________ श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई १७६ प्रासुक जाया मइ छए कान्हइया, इहा *करण मीन न मेख रे कान्हइया लाल ॥३॥है। ते वाध्या सुलसा घरइ कान्हइया, . परतखि दीठा अाज रे कान्हइया लाल । वात सह माडी कही कान्हइया, आपण पइ जिनराज रे कान्हइया लाल हुँ० सोल वरस छानउ वध्यउ कान्हइया, तू पिण यमुना तीर रे कान्हइया लाल । नद यसोदा नइ घरि कान्हइया, कहवागउ आहीर रे कान्हइया ।।शाहुँ । वाल्हेसर वारीजी ती कान्हइया, तउ पिण माहे छह रे कान्हइया लाल । परव दिवस हूं प्रावति कान्हइया, - मुख जोवा सुसनेह रे कान्हइया लाल ॥६॥हुँ० जाया मइ तुझ सारिखा कान्हइया, एकरिण नालड सात रे कान्हइया लाल ! एको धवराव्यउ नही कान्हइया, गोदी ले खिरण मात रे कान्हइया लाल ॥६॥है. हाथे उछेरघउ नही कान्हइया, एको पुत्र रतन्न रे कान्हइया ला । नारि जाति माहे जोवता कान्हइया, इवडी काइ अधन्न रे कान्हइया लाल हुँ. रे बोलडे कान्हइया, पूरी कउनी असिरे कान्हइया लाल । पासा जूधी हू जिक्यु कान्हइया, "दण किरण
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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