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जिनराजनूरि-कृति-कुसुमांजलि
वइठी प्रांमण दूमणी, नयगे नीर झति । दुखणी देखो देवकी, हरि पूछइ एकति || मई माहरउ जाण्यउ न छइ, अाज लग को चूक । लोही रेडं हूं जिहा, पडइ तुहारउ थूक ॥२॥ जउ जाण्यउ हुवइ माहरउ, किराही वातइ वांक । सीख समापउ दाखवी, सी छोरू नी सांका अलवि वचन लोपइ जिको, ते हू काढू साहि। तुम्ह उपरांति* कह उस्यु अछइ, इण खोटइ जग माहि ॥1॥ दरसरण करिवा प्रावतउ, हेर हे जइयइ इयइ तुझ तीर। हियडउ हेजइ विह सतउ,+ मो: हिवरगइ दिलगीर ॥ हूँ इण भव इण देह घर, काइन लोपू कार। तुम्हची झारण वहू सदा, ए मुझ अंगीकार क्षा
[सर्व गाथा १२.]
ढाल-१० घाल्हेसर मुझ वीनती गीड़ीचा एहनी हूँ तुझ प्रागलि सी कडे कान्हइया,
वीतग दुखनी वात रे कान्हइया लाल ! दुखणी तउ काका अछइ कान्हईया,
ते ऊमति हूँ भाति रे कान्हईया लाल ||१३० कीघउ फोइ न संभरइ कान्हईया.
'इण भवि करम कठोर रे कान्हईया लाल। जनमतर कीधा हुस्यइ कान्हइया,
मइ के पाप अघोर रे कान्हइया लाल ॥२॥हुँ. - आज लगइ हूं जागती, कान्हइया,
पूरब करम विसेष रे कान्हइया- लाल *ऊपर होउस्युहू +हींसतत : स्यइ कोह