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श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई
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ढाल- आप सवारथ जग सहु रे-पहनी चितवइ गल हत्थइ दियइ, धूणिति विचि विचि सीस । अवतार ए पिण माहरउ, मत पाडइ हो लेखइ जगदीस ॥१॥ ते जामरिण जग सलहियइ रे, निज अगज पोतानइ हाथि । उछेरइ छोती कनई रे, राखइ जिम हो दुरवल नी माथि ॥२॥ते. खेलतउ खिरणमइ विलकतउ*, मुरकतउx मुक्ख लडेह । जामरिण अमीणे लोयणे, जोति होवइ हो रोमाचित देह ॥३॥ते. हुलरावती द्यइ हालरो, नव नवइ सरलइ साद । माथइ गिरी तेहनइ दल,जे देखी हो पाणइ विषवाद । ४॥ते. रोतउ किमइ न रहइ तिसइ, कारिमी सी करि रीम । हेल दे उलसतइ हियइ, धवरावइ हो जे धाइ बत्रीस ॥५॥ते. दक्षिण पयोधर धावतउ, वामइ ठवइ निज पाणि । अति हेजे खीर झरइ तरई, अगरखी हो बांधइ कस तारिण ||६|| सीखवउ बचने बोलवउ, लेले सहुना नाम । दिन राति लाड करावति,हटकइ पिण हो हटकरण री ठाम ।।७।ते मामणे बचने बोलतउ, हठ माडि साडी साहि। हर काइ मागइ सूखडी, ते आपई हो प्राणी धर माहि ।।८। ते० पदमिनी ले पासइ सूयइ, भीनी दीसइ निज पूठि। कोमल करि कमले करी, न्हवरावइ होजे प्रहसमऊठि ॥ते. न रहइ नजरि लागि पखइ, केहनी माहे छेह । काठलि काली राखडि, जे बांधइ हो निगरण सु सनेह ।।१०॥ते. उछाँछलउ ऊछहामणउ, वय देह करमी एह । नाकनी टीसी ऊपरइ, काजलनी हो टीबी द्यइ जेह ॥११॥ते०
[सर्व गाथा १५६]
*खिलक 3 xमुलकवउ + सीखवा नामिण