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शालि भद्र धन्ना चौपाई
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जिम कीघो उपगार, त तिम अवर न को करें । ते विरला ससार, जे जिम तिम प्रतिबूझबै ॥२॥ छोडि मधूरा काम, उठि चलेसी प्राहुरगो । कोई न लेसी नाम, जगल जाइ वसाइसी ॥३॥ किरणस्यु करै सनेह, परदेसी परदेस मे ।
प्राधी गिरणे न मेह, पाए कागद उठि चले ॥४॥ दाल-२१ राग-धन्यासी, मुणि वहिनी प्रीउडो परदेसी पहनी इम धन्नो धरण नै परचावे, नर भव अथिर दिखावे रे। ते हिज साचा सयप कहावे, जे जिन धरम सुरगाव रे ॥१४ाइ० मेरो मेरो करें गहेलो, सब स्वारथ को मेलो रे । ऊठि चलेगो हंस इकेलो, विठडीया मिलरण दुहेलो रे ॥२॥इ. है दिन दस गोवल मै चरणा, पाखर इक दिन मरणा रे । राखरणहार न कोई शरणा, तो एता क्या करणा रे ॥३॥इ० को काहू के संग न जावै, फेर पाछे घर आवे रे । तिण सेती जे नेह लगावै, सो ऊखर मे चावै रे ॥४॥इ० छोरि चलसी माथी पोथी, करि काया सब थोथी रे। प्रागलि जाणं ल्युयर पोथी, है माया सवि थोथी रे ॥शाइ. इत उत डोलत दिवस गमावै, सूता रयरिण विहावं रे। दिन दिन चलगो नेडो प्रावै, मूरख भेद न पावै रे ॥६॥इ० को दुख वांटि न ल्यै इक राइ, परपे पिंड भराई रे । निसदिन चिंता करै पराई, या देखो चतुराई रे ॥७॥६० चालण वरियां होत सखाई, पापणी साथ कमाई रे। फिर आवै पाछि लुगाइ, बेटि जारण सगाई रे ॥८||इ० सब मिली प्रापरणो स्वारथ रोवै, प्रीय की गति कुरण जोवे रे। स्वारथ जास न पूगरे होवे, सो परि पूठ बिगोवे रे इo जब लगि सब हो के मन भावै, जब लग गायो गावे रे । काज सारया मुह भी न लगावै, छिन में छह दिखावे रे ॥१०॥