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श्रातम काया गीत
आतम काया गीत
राग-धन्यासिरी. सुणि बहिनी प्रिउडउ परदेसी, आज कि कालि चलेसी रे। काहि कुण माहरी सार करेसी,
छिन छिन विरह दहेसो रे ।।सु०॥१॥ प्रेम विलूधउ अरु मद मातउ, काल न जाण्यउ जातउ रे । अच चित आणउ आय उतालउ,
रहि न सकइ रस रातउ रे ॥२॥सु०॥ वाट विषम कोउ सगि न आवइ, प्रोउ एकेलउ जावइ रे। विणु स्वारथ कहि कुण पहुचावइ,
आप कोए फल पावइ रे ॥३॥सु०॥ भमिसइ पुरि पुरि मांहि एकेलउ,जिम गलीयां मइ गहलउ रे ना जाणु कित जाइ रहेलउ,
बिछुरयां मिलण दुहेलउ रे ॥४॥सु।। पोतइ सबल साथि न लीघउ, बीजइ किणही न दीघउ रे । मूल गमाइ चल्यउ अब सीधउ,
एको काम न कीघउ रे ॥सु०॥५॥ प्रीतम विण ह भइ रे विराणी,किण ही मनि न सुहाणी रे । पीहर को मई प्रीति पिछाणी,
• जल बल छारि कहाणी रे॥सु०॥६॥ बहिरागी अतर वइरागी, प्रीति सुणति नवि जागो रे । 'राजसमुद्र' भणि सो बड़भागी,नारी विणु सोभागी रे ॥सु०७॥