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श्री विमलाचल विधि यात्रा गीत जउ चालिस तू मारगइ, तउ भेटिसु जगनाथ रे ॥४॥०॥ सोरठ देश सरस अछइ, चरिजे नागरवेलि रे। रिषभ चरण लय लाइनइ, करिजे नव नव केलि रे ॥५॥सु०॥ कडुआ जंगल रूखड़ा, जे फल मेल्हया चाखि रे। ते तुमत संभारिज्ये, सुरतरु सुचित राखि रे ॥६॥ सु०॥ रयणि सचेतन तु रहे, दिन म करे वेसास रे। ऊभा दुरजन मूकिनइ, जास्यइ सही निरास रे ॥७॥सु०॥ देखी नइ पग माडिजे, मूकि मूल सभाव रे। अतर जामी सु सदा, राखे अविहड़ भाव रे ॥८॥सु०॥ पाच महाजन वसि करी, लाख वधारे लाज रे।। वइगउ फिरि घरि आविजे, इम जंपइ 'जिनराज' रे॥॥०॥ श्री विमलाचल विधि यात्रा गीत
राग-प्राशा सुण सुण वीनतड़ी प्रिउ मोरा रे ललना तीरथ भेटण विलंब न कीजइ,
इतना करू निहोरा हो ललना ॥१॥ 'विमलाचल' निज नयण निहारउ,
यात्रा करण पाउधारउ हो ल०। आदिल आदि जिणंद जुहारउ,
दुरगति दूर निवारउ हो ल०॥२॥ . प्राशुक एक भगत आहारी, सकल सचित परिहारो हो ल० । मूको निज मन हूंती नारी, पंथ चलउ पदचारी हो ल० ॥३॥ पूजा करहु त्रिकाल संभारी, सूधा समकित धारी हो ल० ।