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जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि
(२३) श्रीपार्श्वनाथ जिन गीतम् राग - हासलानो जाति, मल्हार धन्याश्री मन गमतउ साहिब मिल्यउ पुरिसादाणी पासन रे । परतिख परता पूरवइ, सफल करइ अरदासन रे || १ || भविअण भावइ भेटीयर, ले साथइ परिवारन रे । आज विपम पंचम अरड, सुरतरु नउ अवतारन रे ॥२॥ भ० जे मुझ सरिखा मानवी, आणइ मन संदेहन रे । तेहनइ सेवक मू किनइ, समझावइ सुसनेहन रे ॥३॥ भ० ॥ जे समरण साचइ मनइ, करिस्यइ वार विचारन रे । तेहनइ प्रभु पुठी रखउ, थास्यइ सानिध कारन रे || ४ || भ० ॥ कीजइ चोल तणी परइ, परमेसर सु प्रीतन रे । श्री ' जिनराज' मिल्या पछी, चढइन वीजउ चीतन रे ||५|| भ०
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(२४) श्री वीर जिन गीतम् राग - गउड़ी मल्हार
भविक कमल प्रतिबोधतउ, साधु तणइ परिवार । गामागर प्रभु विचरतउ, मिलि न सक्यउ तिण वारो रे ॥१॥ चरम जिनेसरु, लीनउ सिवपुर वास । सबल विमासण, केम करु अरदास रे ॥ च० ||२|| हिव अलगउ जाई रहथउ, तिहां किण किम अवराय । चलतउ साथ न' को मिलइ, किम कागल दिवराइ रे ॥३॥ च० ॥ वात करूं ते सांभलइ, दूर थकउ पिण वीर रे । पिण पाछउ उत्तर न दथइ, तिणमो मन दिलगीर ॥४॥ च० ॥