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श्री विहरमान विशति जिन गीतम्
(१२) श्री चन्द्रानन जिन गीतम् ढाल-धरम होयइ घरो.
समाचारी जूजूई रे, आवइ मन सदेह । सी साची करि सरदहु रे, सबल विमासण एहो रे ॥ १ ॥ चंद्रानन जिन, कीजइ कवण प्रकार रे ।
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इग दूसम अरइ, मइ लाधउ अवतार रे ॥ २॥ च०॥ आगम बल तेहव नही रे, ससय पड़े सदीव | सूधी समझ न का पड़े रे, भारी करमा जीव रे ॥ ३ ॥ च० || दृष्टिराग रातो अछइ रे, केहनs पूछें जाइ रे ।
आंपणपउ थापइ सहु रे, तिण मो मन डोलाई रे ||४|| चं० ॥ विहरमान जिन संभली रे खरिय मिलण मन खंत | हुवइ दरसण 'जिनराज' नउ रे, तउ भांजइ मन भ्रांत रे |५|चं०
(१३) श्री चंद्रबाहु जिन गीतम्
देशी - श्रावउ म्हारी सहिया गच्छपति वादिवा.
जोवर म्हारी आई इण दिसि चालतउ है, कागलीयउ लिख दीजइ हे ।
अ ंतरजामी थी अलगा रहता है, कागल वाही कीजइ हे । १ जो० | साहिबीयउ तउ छइ वइरागीयउ हे, फेर जबाब देस्य हे । पिण प्रभुनी सेवा मांहे रहया है,
सहजइ काज सरेस्यइ हे ||२||जो० ॥ साहिव नइ अम्हची खप का नथी हे, पिण गरज अम्हारइ हे । जउ साचा सा भगति कहावीयइ हे,
तउ भव जलनिधि तारइ हे || ३ ||जो० ॥