________________
मुहावरे भी आये है, यथाः
मयणतणे दांते करी, लोह चिण कुरण चावरे (१४२) कवि की छन्द-योजना वैविध्य पूर्ण है। उसमे एक अनन्त संगीत की गूज है जो विभिन्न प्रकार की ढालो और रागिनियो द्वारा हृदय के तार झकृत कर देती है। प्रत्येक पदके साथ रागविशेष का उल्लेख कर दिया गया है । यथा प्रसंग तर्ज भी दे दी गई है। मुझे पूरा विश्वास है कि जिनराजसूरि के ये पद-जो अव तक अधिकांश रूप मे हस्तालखित प्रतियो में वन्दी पडे छटपटा इहे थे अव प्रकाशित होने से कबीर, सूर और मीरा के पर्दो की तरह लोक-कंठो मे रमकर दग्ध हृदय मरुस्थल मे अनन्त प्रानन्द की वर्षा करेंगे।
(
)