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विधान पुष्करावर्त धना धन समान युगप्रधान श्री श्री श्री ४ श्री जिलरोजसूरि विजयि राज्ये नागडगोत्र शृगारहार सा० जैत्रमलत त्तनय सविनय धर्म-धुरा धारण धीय श्री मज्जिनोक्त सम्यक्त्व मूल स्थूल द्वादन व्रतधारक श्री पंचपरमेष्टि महाम त्र स्मारक श्रीमत् साहिसभा शृगारक सश्रीक स घमुख्य सा० नागडगोत्रीय सा० भारमल्लेन । लघुवांधव नागडगोत्रीय सा० राजपाल । विचक्षणधुरीण सा० उदयकरण जैवातृक महासिंहादि सार परिवारयुतेन लेखित । तच्च वाच्यमान चिर नंदतात् । सदा । लिखित चैतत् पं० लावण्यकीति गणिना चित्रित चित्रकारेण सालिवाहनेन । श्रयः सदा।'
हमारे संग्रह में भी मयेन जयकिसन के चित्रित सं० १८२५ की प्रति है जिसमे ४७ चित्र हैं। लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है -
सं० १८२५ वर्षे मिति प्रथम श्रावण सुदि २ शुक्रवारे पुख निखत्र लिखव्यो मथेन श्री श्री रामकृष्ण जी तत्पुत्र मथेन जय किसय । तत्र सजुगते । श्री बीकानेर मध्ये । शुमभवतु कल्याण मस्तु ।
बीकानेर-वृहद् ज्ञानभंडार, श्री पूज्यजी स ग्रह, बोरान् सेरी उपासरा आदि अन्य कई ज्ञानभंडारों में भी इस रास की सचित्र प्रतिया मिलती है जिनमे से, वोरान्सेरी उपाश्रय की प्रति जो अभी महोपाध्याय विनयसागर जी संग्रह कोटा में है शालिभद्ररास की सचित्र, सुन्दर प्रति उल्लेखनीय है । सकडो प्रतियों की उपलधि और १०-१२ सचित्र प्रतियो की प्राप्ति इस रास की प्रसिद्ध और लोकप्रियता की परिचायक हैं।
शालिभद्र महान् भोगी और महान त्यागी थे । 'अन्तगड दशा' नामक पाठवें अंग-सूत्र में शालिभद्र चरित्र वर्णित है। उसके दाद संस्कृत और राजस्थानी, गुजराती में अनेक काव्य इस कथा प्रसंग को लेकर रचे गए है । स०१२८५ मे खरतरगच्छीय पूर्ण
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