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॥ भारती ॥
अमर पद पावै ॥ जै०॥५॥
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॥ आरती संध्या की। रिषन अजित संन्नव अनिनंदन सुमति पदम श्री सुपासकी। जै महाराज कि दीन दयाल की आरति कीजे। चंद सुबिधि शी तल श्रेयांसा । बासु पूज्य जिन राज की ॥ जै० ॥१॥ विमल अनंत धर्म हितकारी। शांति नाथ सुख कार की जैम० ॥२॥ कुं थुनाथ अर मल्लि मुनिसुव्रत नमि नमुं सो वन कायकी जैम० ॥३॥ नेमि नाथ प्रन्न पार्थ चिंतामणि वर्षमान नव पार की जै० ४॥ कंचन आरति बऊ बिध सऊकर ली जेलीजे अंग उबाह कीजै ० ॥ ५॥ सक ल संघ मिल आरति करत है आवा गमन निवार की जैमहा०॥६॥
॥ इति संपूर्णम् ॥
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