Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
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॥ पां०क०पू० ॥
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१८३
प्रधान ॥ १ ॥
॥ मरुदेवानंदनकी क्या बिलागतप्यारी ॥ जगपति जिनवरकी । क्याबि मोहनगा री ज० ॥ मोहत प्रनुकेमोहनरूपें । निरषनि रनरनारी क्या० ॥ १ ॥ जोगकर्म अंतरायक मक । क्षीणनए निरधारी ॥ दानसंवत्सरघ नजिम वरसत । पृथ्वी प्रमुदित कारी क्या० २ ॥ नवलोकांतिक देवसबेमिल । हाजरहोय सुचारी ॥ जयजय मंगल शब्द उचारत । ध र्म होसुखकारी क्या० ॥ ३ ॥ दानधर्म शिव मारगप्रभुजी । प्रगटकियो हितकारी ॥ दाता दीन दयाल जगत में | जिनसम कोसुविचा री क्या० ॥ ४ ॥ इंद्रादिक सुरसुरी नरनारी । दोत्सव अतिनारी ॥ गानदान सनमानता नकरि प्रगति सकलसुप्यारी क्या० ॥ ५ ॥ तजि संसार लियो शुभयोगें । शंयम सतरपू कारी ॥ मनपर्यव वरज्ञान जयोतब । विहरत पर उपगारी क्या० ॥ ६ ॥ तुझी प० ० ज०श्री० दीक्षा० अष्टद्रव्यं ० स्वाहा ॥ ३ ॥ ॥ दोहा ॥ गजवर व समूह रथ । पायक कोफा

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