Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-(१)
पांज्ञा०पू०॥
१९७
उपजें तसऋविपुलमतिनेदेंमनपर्याय १ मूर्तवस्तु अवलंघियह द्रव्यक्षेत्र शुरुकाल जावेंचउहाजाणियें शरचिलहोसुखमाल २
॥जिनराज नामतेरा एचाल ॥ मनपर्यवानिधानं गुणरत्नके निधानं पूजोरे नविक शुनलावें ॥ १ ॥ घटमात्र योधकर्ता सामान्य लावधर्मा संसार नीतिहर्ता पू० २ साक्ष्य दीवसागर सन्नीपंचेंदि शागर मन सावके दिवाकर पू० ॥३॥ मनद्रव्यके अशेष गुणपर्ययादिशेष स्फुटनासितेविशेष ॥ १॥
॥ इलोक ॥ मनःपर्याख्यं विपुल मतिचान्य हजुमति विधेयं यदज्ञानं उदय गतनाव प्रकटनं ॥ सुसंज्ञा वरपंचेन्द्रिय विषयि रम्यैर्नवपदे यजे पूजाद्रव्ये स्तदहमधुना मंगल करम् ॥ नहीश्री मनःपर्यवज्ञानाय जलंचं यजामहे स्वाहा ॥ इतिमनःपर्यय ज्ञान पूजा ॥ ४ ॥
॥दोहा॥ शुरु साधारण सकल निर्व्याघातानंत एकसकल साकारफुनि केवल नंतानंत १ पंचमगति दातार यह पंचमज्ञान उदार
-
--
-
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212