Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

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Page 204
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ ष्ट प्रकारी ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only २०१ ॥ दोहा ॥ वावना चंदन कुमकुमा । मृगमदनें घन सार ॥ जिनतन लेपेतसुटले । मोहसंता पविकार ॥ १ ॥ सकलसंताप निवारण तारण ऊनवि चित्र परमानी हा रिहा तनुचरचो जविनित्त १ निजरूपै उपयोगी धारी जिनगुणगेह । जा वचंदन सऊनावधी टाले दुरितछेह ॥ २ ॥ जिनतनुचरचतां सकलनांकी | कहै कुग्रहाउ तात्राजाकी || सकल निमेषता ज म्हांकी जव्यता श्रमती जपाकी ॥ ३ ॥ सकलमोह० चं० यजामहे स्वाहा २ ॥ ॥ दोहा ॥ शतपत्रीवर मोगरा | चंपक जायगुलाब ॥ कदमणोबलसरि पूजो जिनजरबाब अमलच्खं द्वितमंनितविकसित शुनकुसुमनी घनजात लाखीणोटोहरठवोप्रंगी रचोबऊनां त १ गुणकुसुमैनिजातम मंठितकरवानव्य गुणरागीजप्रत्यागी पुष्प चढावो नव्य ॥ २ ॥ जगधणी पूजतां विविधफलै सुरवरातेगिणैखि णश्यमूलै खांतधरिमानवाजिनपपूजै तसुतणा

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