Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

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Page 206
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अष्ट प्रकारी॥ २०३ - - घटज्ञानज्योती प्रकाशै तेहथी जगतणानाव नाशै ॥३॥ नविकनिर्मल० जीपर०दीपयजा०स्वाहा ॥ ॥दोहा॥ अक्षत शक्तपूरसुं जेजिन आगैसार स्त्र स्तिकरचतां विस्तरै निज गुणनरविस्तार उज्जल अमल शखंमित मंमितशतचंग पुं जत्रयकरो स्वस्तिक अस्तिकलावेरंग ॥ १ ॥ निजसताने सन्मुखउन्मुख नावेंजेह ज्ञानादि क गुणगावें नावें स्वस्तिकजेह ॥ २॥ स्वस्ति क पूरतां जिनपआगे स्वस्तिश्री जनकल्याण जागें जन्मजरा मरणादि श्शुलनागें नियत शिवशर्मरहै तासुआगे ॥३॥ सकल मंगल झा परम० अदतं यजामहे० ॥ दोहा ॥ सरस शुचीपकवानबऊ शालिदालिघृतपू र करोनैवेदाजिनशगलै क्षुधादोषतसुदूर लपन श्रीवरघेवर मधुतर मोतीचूर सिंहके सरिया सेविया दालिया मोदकपूर ॥ १ ॥ साकर दाखसिंघोझा नक्त व्यंजन घृतसदा । करोनैवेदा जिनशागलै जिममिलै सुखशनव । For Private And Personal Use Only

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