Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
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॥ शष्ट प्रकारी ॥
पापसंतापधूजै ॥३॥ विकचनिर्मल० नॅझोपरम० पुष्पं यजा० ॥
॥दोहा॥ कृघ्नागर मृगमदतगर । अंबरतुरकलोबा न ॥ मेलि सुगंध घनसारघन करोजिनने धूपदान ॥ १॥ धूपघटीजिममहमहै तिमदहैपातिकवृंद शर तिअनादिनीजावै पावैमनआणंद ॥ १ ॥ जे जिनपूजेधूपैनवकूपें फिरतेह नावेंपावें ध्रुवघ रशावेंसुखअबेह ॥ २ ॥ जिनघरेवासांधूप पूरे मिच्छतदुर्ग धताजायटूरै धूपजिमसहजऊ ईगसुनावें कारकाउच्चगतिनावपावें॥३॥ सकलकर्म नहीपरम० धूपंयजामहेस्वाहा
॥ दोहा॥ मणिमयरजततांमना। पात्रकरीघृतपूर ॥ वत्तीसूत्रकुसुंजनी । करोप्रदीपसुनूर १॥ मंगलदीपवधावोगावो जिनगुणगीत दीपत णीजिमआलिकामालिकामंगलनीत १ दीपत णीशुनज्योती मोतीजिनमुखचंद निरखीहर षोनविजनजिमलहोपूर्णानंद २ जिनगृहँदीप मालाप्रकाशै तेहथीतिमिरज्ञाननाशै निज
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