Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
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॥छारती।
तिश्रुति शवधि शमनपर्यव। केवल काठेस ब दुखदंदा जय० ॥२॥ नवजल पार उता रण कारण ॥ सेवोध्यावो लविजनवंदा जय० ३॥ शिवपुरपंथ प्रगटएसीधा। चौमुखलार्ष श्री जिनचंदा जय० ॥ १ ॥ शविचल राज हीयासैपावें। चिदानंद निजतेजश्मंदा जय० भारति ज्ञानदि० अनुभव ॥ इति आरती ॥
॥ अथ नाषा अष्टप्रकारी पूजा ॥ गंगामागध कीरनिधि अपधि मिश्रितसार कसुवासित शुचिजलें । करोजिन सात्र उ दार ॥ मणि कनकादिक शुविधकरी नरी कलस सफार । शुनरुचि जेजिनवरन्हवें तसु नहि दुरित प्रचार ॥ २ ॥ मेरुसिखर जिमसु
वर न्हवण शमान । करता बरता निजगुण समकित वृद्धि निधान ॥ ३ ॥ हर्ष जरि अप्सरावंद शावें । स्नानकर एमशासी सनावें । जिहांलगे सुरगिरी जंबुदीवो ॥ श म्हतणा साध्यजीवा तुजीवो ॥१॥
लोक विमल । नही परमपरमात्मने थ नंतानंत ज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्यु निवारणा य श्रीमजिनेंद्राय जलं यजामहे स्वाहा ॥
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