Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

View full book text
Previous | Next

Page 201
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ भारती॥ नविनावेंशचनकरी लहोपरमसुखसार २ केवल नाणउदार यातें आनंद शधिक श पार शं० नवसिछस्थ दुनेद तसअंतर बज तरनेद तेतोवरणे किमु कविवार के० ॥१॥ रविजिम श्रमल प्रकाम द्रव्यसकल परिणाम तससला विनतिकार के० ॥२॥ काल त्रय अनुसारें निज निज वेदा शाकारें प्रतिबिंबि त होय तिणवार के० ॥३॥ क्षेत्रथी लोकालो क। शनिरामचंद्रोदया लोक यातें परमानंद अपार के० ॥ ४ ॥ ॥श्लोक ॥ सम्यक्तं समुपैति शुझमखिलं यस्माजगन्ना सते साक्षाहस्तगतं त्रिकाल जनितं वतस्फुर त्यंजसा ॥ जायंते तुलसिझयो नवपदे द्रव्यः शुनैः केवलज्ञानं तत्परिपूजयामि सतनं ना वैरनंतं महत् ॥ ५॥ नहीश्री समस्त लोकालोक प्रकाशकाय के वलज्ञानाय जलं चंदनं पु० यजामहे स्वाहा॥ ॥ इति पंचज्ञान पूजा समाप्ता ॥ ॥शारती ॥ जै जगसुखकारीवारी। जैसमपद चितधारी - For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212